Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं । ७४६ वात्सल्य (९) आन्तरिक रमणीकता (१०) दुःखमुक्ति के छ. आयतन ।
आचार्य श्री फरमाते हैं - अशुभ मन, वचन और काया दण्ड के कारण हैं, दण्ड से अदण्ड में लाने वाली प्रवत्ति का नाम सामायिक है। कर्म के कचरे को धोने और आत्मा को हल्का करने में सामायिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है।" एक प्रवचन में आचार्य श्री ने फरमाया कि जैन धर्म जैसा ऊँचा धर्म पाकर आप हम पिछड़े रह गए तो इससे ज्यादा कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
अन्य प्रवचन में फरमाया-“दया के दो रूप हैं -१. द्रव्य दया २. भाव दया। द्रव्य दया के साथ यदि भावदया जुड़ जाए तो उसका फल कर्म का क्षय है। द्रव्य दया से शरीर का रक्षण तो होता है, किन्तु इससे जीवन पवित्र बनने, जीवन में निर्मलता का निखार आने का निश्चय नहीं है, किन्तु भाव दया करके उससे जीवन को पवित्र बनाया जा सकता हैं।” 'धन का सदुपयोग : संवितरण' में आचार्य श्री ने फरमाया है -“आपके पास दुःख से मुक्त होने की कुंजी तो है, लेकिन उसको घुमाना नहीं आता, यही कारण है कि संसार के लाखों, करोड़ों, अरबों मनुष्य दुःखी के दुःखी रह जाते हैं।"
___ आचार्य श्री के प्रत्येक प्रवचन में जीवन के उत्थान हेतु विचार उपलब्ध हैं। इनका जितना मनन किया जाएगा, उन पर चिन्तन-मनन कर आचरण में उतारा जाएगा, उतना ही जीवन सुखी एवं समुन्नत होगा। (१४) पर्युषण साधना
आचार्यप्रवर के सन् १९७० के पूर्व के कुछ प्रवचन इस लघु पुस्तिका में संगृहीत हैं। प्रवचन सहज स्वाभाविक एवं प्रेरणाप्रद हैं। इसमें दर्शन, ज्ञान, सामायिक, तप, दान, संयम, शुद्धि और अहिंसा-साधना का विवेचन हुआ है। दर्शन-साधना विषयक प्रवचन का एक अंश यहाँ उद्धृत है__“आप लोग जैन धर्म पाये हुए हैं, अत: सबके लिए सम्यक्त्व की पृथक् शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए किन्तु आज का मोहभरा व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन ऐसा विकृत हो गया है कि उसमें पद-पद पर मिथ्यात्व के आचार-विचार घर किए बैठे हैं। इसके प्रमुख कारण चार हैं-१. अज्ञानता २. भौतिक आकांक्षा ३. दैवी भय और ४. पड़ौसी समाज का असर।” सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल द्वारा 'पर्युषण साधना' की तृतीयावृत्ति प्रकाशित की गई है। (१५) आत्म-परिष्कार
आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के प्रवचन आत्म-परिष्कार की दृष्टि से नितान्त महत्त्वपूर्ण हैं। उनके | विशाल प्रवचन-साहित्य में से कतिपय प्रवचन या उनके अंश इस ५६ पृष्ठीय लघु पुस्तिका में समाहित हैं, जो हृदय
को छूते हैं, चिन्तन-मनन की प्रेरणा देते हैं तथा जीवन में अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। प्रवचनों के शीर्षक हैं-आत्म-परिष्कार, सन्त-शरण, महान् सन्त आचार्य श्री शोभाचन्दजी महाराज, मोक्षमार्ग आदि। प्रवचन का एक अंश-“परिग्रह का मतलब केवल पैसा बढ़ाना और तिजोरी में भरना ही नहीं है, बल्कि कुटुम्ब, परिवार, व्यापार व्यवसाय आदि में उलझे रहना भी परिग्रह है।"
पुस्तक का प्रकाशन - सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू बाजार, जयपुर ने किया है।