Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
वैशाख शुक्ला अष्टमी संवत् २०४८ को हुआ। उपर्युक्त समस्त घटनाएँ उत्तरायण में ही हुईं। साथ ही उपर्युक्त चारों ।। घटनाएँ शुक्ल पक्ष में ही हुईं। शुक्ल पक्ष का ज्योतिष शास्त्र में बहुत महत्त्व है। इसका कारण स्पष्ट है। क्योंकि || इसमें चंद्र बली रहता है। बली चंद्र का बल ही मानव के मनोबल को बढ़ाता है तथा जीवन का विकास करता है। अत: मुहूर्त चिंतामणि में कहा गया है
नंदा च भद्रा च जया च रिक्ता पूर्णेति तिथयोऽशुभमध्यशस्ताः । सितेऽसिते शस्तसमाधमा: स्युः सितज्ञभौमार्किगुरौ च सिद्धाः ।।
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आचार्य श्री की जन्म-कुण्डली में नवमभाव में सूर्य बुध के साथ अवस्थित है। बुध के साथ होने से बुधादित्य | योग है, साथ ही यह गुरु की राशि का है और मित्र राशि का होने से भाग्य स्थान की वृद्धि करता है। चलित में भी वही स्थिति रही। विशेषता तो यह है कि नवमांश में भी सूर्य वर्गोत्तमी बन गया और चन्द्र के साथ युति हो गई। अन्य सद्गुणों एवं योग्यता के साथ सूर्य के बलवान होने के कारण ही गुरुदेव आचार्य पद पर आसीन हुए और उनका वर्चस्व अहर्निश वृद्धि को प्राप्त होता रहा। इसी कारण ही आध्यात्मिक क्षेत्र में कुशल नेतृत्व किया और साथ ही देदीप्यमान नक्षत्र के समान ज्ञान से संसार को आलोकित करते रहे।
अब चन्द्र की स्थिति का निरूपण किया जाय तो चंद्र तृतीय स्थान में स्थित है। यह स्थान पराक्रम का है। | इसका स्वामी बुध है, जो सूर्य के साथ बैठकर इस घर को देख रहा है। सूर्य बुध की दृष्टि तृतीय भाव पराक्रम को मजबूत कर रही है। इस घर की विशेषता है। इस घर पर पाँच-पाँच ग्रहों की दृष्टियाँ हैं। सूर्य व बुध के साथ-साथ शनि और गुरु भी पराक्रम को देखते हैं। गुरु की दृष्टि सकारात्मक मानी गई है और शनि की दृष्टि नकारात्मक मानी गई है। शनि की चन्द्र पर दृष्टि निवृत्तिमार्ग की द्योतक है। वह त्याग, तपस्या और वैराग्य प्रधान बनाती है तो दूसरी
* जैन धर्म में पुरुषार्थ-पराक्रम की प्रधानता है , जो आचार्यप्रवर में थी ; तथापि पंच समवाय में काल के अन्तर्गत ज्योतिर्विद्या का भी अपना एक पक्ष है जिसकी चर्चा इस लेख में की गई है।