Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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(१४)
गणग्राम श्री गुरु चरण सरोज मधुप हैं मुनिवर निर्मम, हस्ती सम प्रतिवादि मान मर्दन हित हरिसम । तीव्र जिन्हों का त्याग राग पै है संयम पर, मननशील मन मुदित होत जिनके दर्शन कर। लब्ध प्रतिष्ठित निज इष्ट के सेवक सच्चे पेलखो, जीवन सु-धन्य शुभ नाम यह आद्याक्षर में देख लो ॥१॥
(१५) वर्ष गांठ पर स्तुति
(श्री पुष्करमुनिजी म.) आगम के ज्ञाता अरु विश्व में विख्याता मुनि, प्रवचन दाता तेरे जनता का ठाट है। संयम की साधना में जप की आराधना में, लीन रहे आठों याम समता सम्राट हैं। जैन धर्म ज्योतिर्धर पण्डित मण्डित वर, पूज्य शोभाचन्द जी का दिपा रहा पाट है। शासन की सेव कर चिरायु हो 'गजमुनि',
आचार्यवर तेरी आज 'वर्षगांठ' है। (१६ जनवरी १९६५ पौषशुक्ला १४ संवत् २०२१ को जन्मतिथि पर प्रस्तुत)
(१६)
भव्य भावना
(मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म.) पेखो समुज्ज्वल साधना सर्वोच्च जिसकी श्रेष्ठतर । आराधना त्रय-रत्न की पुनि देखलो है प्रबलतर ॥ है शान्तिमय मुस्कान जिसके, राजती मुख पै सदा। मौन-व्रती रहते निरर्थी झंझटों से सर्वदा ॥१॥ जो इच्छते उन्नति अहा ! आचार और विचार की। पुनि हैं बताते भावुकों की क्षीण-गति संसार की॥