Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं गजेन्द्र के सुदर्श से ही, पाप नष्ट हो रहे ॥३॥ सुमेरु सी अडोलता, समुद्र सी अगाधता । सुपाद पद्मरेख ही बता रही महानता ॥ अनंत हैं असीम हैं, गुणानुवाद आपके । गजेन्द्र नाम जप से ढहें पहाड़ पाप के ॥४॥ जिनेश धर्मसंघ के धुराग्रणी महारथी । सुभाग्य से हो संघ को मिले महान सारथी ॥ बढा रहे सुसंघ को मुक्ति पथ पै सदा । प्रणाम है गजेन्द्र देव कोटि कोटिश: मुदा ॥५॥ विभाव से स्वभाव में रमा रहे विचार को ।। सुब्रह्म की हुताश से जला रहे विकार को | सुज्ञान ध्यान में समस्त, काल को लगा रहे । सुज्ञान के प्रकाश से तमान्ध को भगा रहे ॥६॥ प्रभो तवैव नाम से, कठोर कर्म चूर हों । पढें तथा स्मरें सदा, समस्त दुःख दूर हों ॥ कृपा कटाक्ष से वरें विमुक्ति की वधू वरा । गजेन्द्र नाम जाप से सुरालया बने छटा ॥७॥ सुशंख नाद पूर पूर शान्तियुक्त क्रान्ति के । जगा दिया समग्र राष्ट्र और मसीह शांति के ॥ धरा धरेन्द्र मेरु से महोच्च पूज्य हस्ति भो । प्रगाढ नौ प्रकार की सभक्ति से प्रशस्ति हो ॥८॥ 'धनंजय' गजाग्रसिंह पी रहे यशोसुधा । गजेन्द्रवर्य हस्ति की सुभक्ति से भावत: मुदा ॥ जिनेन्द्र औ गजेन्द्र के प्रति पुनीत आसता । मिले हमें हठात् मिटे दुरन्त कर्म दासता ॥९॥