Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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सभी दिशा में सुयश जिन्हों का छाया है २ अपरंपार जिन्हों की देखो माया है२ ज्ञान प्रकाश दिखाकर के, मोह अंधियारा टारे ॥गुरुजन्म शहर पीपाड़ नगर में पाया है२ धन्य २ सती रूपकंवर ने जाया है२ माँ की कूख दीपाई रे , जग में प्रकटे सितारे ॥गुरुसंयम ले दश वर्ष में ज्ञान बढ़ाया है २ शोभाचार्य के शिष्य मेरे मन भाया है२ आतम गुण विकसाया रे, महिमा पूजा से न्यारे ॥गुरुदक्षिण देश सतारा नगरी पावनी २ नाग की जीवन रक्षा की मन भावनी २ दुःख सह शिक्षा देवे रे, कोई न किसी को मारे ॥गुरुनित्य नये उपदेश सुनाया करते हैं२ वचनों में अमृत के झरने झरते हैं २ पी लो प्याला भर भर के ज्ञान का अमृत झारे ॥गुरुदो हजार तेरह में मन की आश फली २ 'मैना सुन्दर' आज निकाली मन रली २ निशदिन तुमको ध्याऊँ मैं, पूरो मनोरथ सारे ॥गुरु
(३१)
गुरुदेव-वन्दना (तर्ज - जय बोलो महावीर स्वामी की....) वन्दन करते हम पूज्यवर को, संघ नायक धर्म दिवाकर को ॥टेर ॥ हस्ती की शक्ति निराली है, मुख पर सूरज सी लाली है ।
चमकीले ज्ञान प्रभाकर को ॥१॥ कलयुग में सतयुग लाते हैं, कांटों में फूल बिछाते हैं ।
सुशीतल शान्ति सुधाकर को ॥२॥ गुरुवर की महिमा भारी है, ये अखण्ड बाल ब्रह्मचारी हैं ।
___ज्योतिर्मय गुण रत्नाकर को ॥३॥ अमृत सी मीठी वाणी है, जन-जन की जो कल्याणी है ।