Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं मन अडोल है मेरु जैसा, देखा जग में त्यागी ऐसा,
सेवे सुर नर देव- तुमको वीर वाणी घर घर में फैले, प्रभु भक्ति के नित हो मैले,
शिक्षा है अहरेव -तुमको. पल पल क्षण व्यर्थ न खोओ, बीज धर्म के घर-घर बोओ,
___ करो ज्ञान स्वयमेव - तुमको - नगर भरतपुर विचरत आया, दो हजार बीस में गाया,
जुग जुग जीवो गुरुदेव -तुमको (३५) गुरु गुण महिमा
(तर्ज - चांदनी ढल जायेगी...) गुरु हस्ती गुणवान हैं जैन जगत की शान हैं, बाल ब्रह्मचारी रे, वन्दना हमारी रे॥टेर ॥ केवलजी के बाल हैं, रूपां सती के लाल हैं, धन्य महतारी रे, वन्दना हमारी रे॥१॥गुरु ॥ देश मारवाड़ में, शहर पीपाड़ में, हुए गुण धारी रे, वन्दना हमारी रे ॥२ ॥गुरु ॥ बाला पन आया है, शोभा गुरुवर पाया है। महाव्रतधारी रे, वन्दना हमारी रे॥३॥गुरु ॥ गुरुदेव ज्ञानी हैं, अमृत सी वाणी है, सुनो नर नारी रे, वन्दना हमारी रे ॥५॥गुरु ॥ सामायिक व्रत पाल लो, स्वाध्याय का लाभ लो, गिरा ये उच्चारी रे, वन्दना हमारी रे ॥६॥गुरु ॥ 'गोविन्द' को तारोगे, पार भी उतारोगे, आशा यही भारी रे, वन्दना हमारी रे॥७॥गुरु ॥
(३६) गुणरत्नाकर की गौरवगाथा (तर्ज - जय बोलो महावीरस्वामी की...) जय बोलो हस्ती गुरुवर की,