Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
७१८
संकट में भी पालें आज्ञा, वीर प्रभु भगवान की ॥४॥
वन्दे मुनिवरम्छोड़ दिया घर बार जिन्होंने , सब जग को घर माना है। कहाँ रहेंगे कोई न जाने, इनका ठौर ठिकाना है। दीपक की टिम टिम ज्योति क्या, सूरज को दिखलाना है। इनका जीवन निरख निरख कर, अपना तेज बढ़ाना है। गुरु कृपा से महिमा गाई, 'हीरा' ने भगवान की ॥५ ॥इन. ।
वन्दे मुनिवरम्(२१)
धर्मचक्र के धारी परम प्रतापी पूज्यराज ये धर्मचक्र के धारी हैं। जैन जगत सिरताज गुरुवर शुद्ध बाल ब्रह्मचारी हैं ॥टेर ॥ त्रिभुवन में छाया सुयश, अहा शुभ कर ललाम जगतोद्धारक आप हैं, नाम काम अभिराम । अल्प अवस्था में भी जो आचार्य सुपद को पाते हैं जो चरण कमल को आते हैं, वे ज्ञानसुधा पी जाते हैं ॥१॥ ऐसी हस्ती आप हैं, और न कहीं दिखलाय दर्शन से इक बार ही परमभक्त बन जाय। पाप विनाशक सत्य उपासक, सर्व गुणों के धारी हैं नर श्रेष्ठ हुए जिस पुण्य गोद से धन्य धन्य महतारी हैं ॥२॥ तीर्थराज गुरुराज हैं ज्ञान गंग कर स्नान सबको मिलता है नहीं ऐसा भाग्य महान । इसी खुशी में आओ हिलमिल दिल के ताले खोल दो नभ गूंज उठे गुरुराज की एक बार जय जय बोल दो ॥३॥
(२२) कहाँ चले गए गुरुवर प्यारे
(तर्ज - उठ जाग मुसाफिर...) स्वाध्याय की बीन बजा कर के, कहाँ चले गए गुरुवर प्यारे, भक्तों के मन को मोहित कर, कहाँ चले गये. ॥टेर ॥