Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
७१३
(१८)
सवैया _(तर्ज - सवैया नमूं श्री अरिहंत) नमूं सिरि गजइन्द्र हँस मुख सौम्य चन्द्र, केवल रूपांरा नन्द सूरत मोहन गारी है। पंच महाव्रताचार इन्द्रिय पाँच दमन हार, समिति गुप्ति धार किरिया उद्धारी है॥१॥ क्रोध की मिटाई झाल, मान माया दीनी टाल, लोभ आड़ी बांधी पाल, बाल ब्रह्मचारी हैं। ज्ञानी ध्यानी श्रद्धा (इष्ट) वान छत्तीस गुणां री खान, आपरो जो धरे ध्यान, पीड़ा जावे सारी है ॥२॥
(१९)
गुरु गुण महिमा जय बोलो गजेन्द्र गुरुवर की, संघ संचालक पदवीधर की ॥टेर ॥ सती रूपा मां के नन्दन हैं, केवलचन्दजी कुल चन्दन हैं।
लघुवय में दीक्षित मुनिवर की ॥१॥जय. ॥ शोभाचन्द्र जैसे गुरु पाये, शीतलता चन्दन सी लाये।
प्राण रक्षा की थी फणिधर की ॥२॥जय.॥ जो शासन के उजियारे हैं, श्रमणों में संत निराले हैं।
महातपो धनी योगीश्वर की ॥३॥जय. ॥ स्वाध्याय का नाद गुंजाया है, समभाव में धर्म बताया है।
___ बरसे है धार सुधारस की ॥४॥जय. ॥ गुणियों की महिमा गावे जो, तीर्थंकर पद पावे वो।
मुक्ति पथ के उजियागर की ॥५॥जय.॥ गुरु पंच महाव्रत धारी हैं, कई भव्य आत्मा तारी हैं।
__ आचारनिष्ठ संकट हर की ॥६॥जय. ॥ सूरज सम निर्मल ज्योति ये, चन्दा सम निर्मल मोती ये।
कहे 'हीरा' धर्म दिवाकर की ॥७॥जय. ॥