Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में राहु शुभ फलदायी माना गया है। इसी प्रकार से द्वादश में केतु भी आध्यात्मिक जीवन पुष्ट करता है ।
इस प्रकार उपर्युक्त योगायोगों के द्वारा इस समय में सम्पन्न दीक्षा के द्वारा उन्हें अल्पायु में ही आचार्य पद की प्राप्ति हुई और दीर्घकाल तक आचार्य पद पर आसीन रहे, साथ ही राजयोग के ग्रहों के द्वारा लोक कल्याण करते
रहे ।
• महाप्रयाण कुण्डली
महाप्रयाण वि. सं. २०४८ वैशाख शुक्ला ८ दिनाङ्क २१ अप्रेल १९९१ रविवार रात्रि ८ बजकर २१ मिनट ।
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आचार्य श्री गुरुदेव का महाप्रयाण दिवस भी अत्यन्त श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण रहा है। जैसा कि पूर्व में कहा जा | चुका है कि गुरुदेव के जन्म, दीक्षा आचार्यपद और महाप्रयाण सभी कार्य उत्तरायण सूर्य में हुए हैं। उत्तरायण सूर्य में | देह त्याग होने से मोक्ष (स्वर्ग) की प्राप्ति होती है, ऐसी शास्त्र मान्यता है । आचार्य श्री के महाप्रयाण के समय उच्च का सूर्य आध्यात्मिक ज्योति को निर्वाणपद देने के लिए तत्पर रहा है।
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अब चन्द्र की स्थिति पर विचार किया जाय तो शुक्ल पक्ष है, अतः चन्द्रमा पूर्ण बली है। वह अष्टमी का दिन | होने से अपनी पूर्ण प्रभा के साथ आलोकित है। साथ ही कर्क राशि पर स्थित है जो स्वगृही है और गुरु के साथ | है। जैसा कि दीक्षा मुहूर्त के समय गुरु चंद्र की युति हुई थी, वही स्थिति महाप्रयाण (निर्वाण) काल में हुई है, जो अत्यन्त दुर्लभ स्थिति है । गुरु और चंद्र की दृष्टि शनि पर है, जो कल्याण की सूचक है।
नक्षत्र की दृष्टि से देखा जाय तो उस दिन पुष्य नक्षत्र था, जो अपनी चरम सीमा पर था। रविवार के दिन पुष्य | नक्षत्र होना अत्यन्त शुभ माना गया है।