Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं विदग्धो व्याख्याने मधुरतरभाषी मुनिवरः प्रदीप्तिं कुर्वन् यो जिनवचनमत्यन्तममलम् । मुदा धर्मारामे चरति संततं शुद्धमनसा, गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्ल : शुभमतिः ।६।। वाणी मधुरता युत चतुरता है सरल व्याख्यान में, गणिराज जिनवर वचन को दीपित किया निज ज्ञान में, आप केवल विमल मन जीवादि तत्त्व विचारते -
शुभ बुद्धि हस्तीमल्ल गणि को देखि कलिमल भागते ॥६॥ जिनके व्याख्यान में वाणी की अतीव मधुरता है और जो अपने निर्मल ज्ञान से जिनेश्वर वचनों को देदीप्यमान करते हैं, शुद्ध मन से और प्रसन्नता से धर्म रूपी बगीचे में विचरण करते हैं, ऐसे शुद्ध बुद्धि के धारक श्री हस्तीमल्लजी को देखकर पाप स्वयं पलायमान हो जाते हैं अर्थात् दूर हो जाते हैं।
सुगच्छे स्वच्छेऽच्छः स्फटिकमणिशोभां वितनुतेप्रशस्तैराचारैः
शुभतरविचारैर्गणिवरः । सदा भव्यैः सेव्यो गुणगणगरिष्ठः किल बुधैर्गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्लः शुभमतिः ॥७॥ अति स्वच्छ सुन्दर गच्छ में जो स्फटिक मणि सम भासते । अतिशय सुदृढ आचार से शुभतर विचार विराजते। जिनको हमेशा भव्य जन श्रद्धा सहित हैं सेवते,
शुभबुद्धि हस्तीमल्ल गणि को देखि कलिमल भागते ॥७॥ जो अतीव स्वच्छ गच्छ में स्फटिक मणि के समान स्वच्छ हैं। शुद्ध आचार-पालन में तथा शुभ विचारों से सदैव सुशोभित रहते हैं। मोक्ष मार्ग चाहने वाले प्राणी श्रद्धा से जिनकी सेवा करते हैं, ऐसे शुद्ध बुद्धि के धारक आचार्य श्री हस्तीमल्लजी को देखकर पाप स्वयं पलायमान हो जाते हैं अर्थात दूर हो जाते हैं।
न चाऽस्मिन् संसारे जिनवचनतो रम्यमपरंवचस्तद् वक्ता य: प्रथम इह तस्याऽस्य गणिनः । मुनिर्घासीलाल शुभमकृत गण्यष्टकमिदं । गणी हस्तीमल्लः शमितकलिमल्लः शुभमतिः ॥८॥ संसार में जिन वचन से कुछ अन्य रम्य न दीखता। इसका प्रवक्ता आज जो उससे भविक जन सीखता। मुनि घासीलाल प्रणीत हस्तीमल्ल अष्टक शोभते । शुभ बुद्धि हस्तीमल्ल गणि को देखि कलिमल्ल भागते ॥८॥