Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
६८४
·
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
आचार्यदेव जयपुर स्थित लाल - भवन में विराजित थे। गुरुवार का मौन थामौन के साथ अनवरत स्वाध्याय व साधना जारी थी। संयोगवश उसी दिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. दौलतसिंह जी कोठारी आचार्य श्री के दर्शनार्थ वहाँ आये । जीने में ही उत्कृष्ट चिन्तक, विचारक व वरिष्ठ श्रावक श्री नथमल सा. हीरावत मिल गये। सूचना दी कि गुरुदेव के आज मौन है किन्तु कोठारी सा. ऐसा कहकर कि मात्र दर्शन करने हैं, वार्तालाप नहीं, उन्हें भी अपने साथ ऊपर ले गये ।
•
ऊपर आए तो शान्त, मुदित, मनोहारी मुखमुद्रा के दर्शन कर अंग-अंग पुलकित हो उठा । दृष्टि निर्निमेष हो गई । आधा घंटे पश्चात् नीचे लौटे। हीरावत सा. ने प्रश्न किया, 'आपको कैसा अनुभव हुआ।' डा. कोठारी ने उत्तर दिया, “मैंने आज यह नया अनुभव प्राप्त किया कि मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक प्रभावी शक्ति होती है। इतना सामीप्य और आनन्द मुझे आज से पहले कभी दर्शन करके महसूस नहीं हुआ। ऐसा लग रहा था मानो वाणी के बंधन तोड़ कर भावनाएँ बात कर रही थीं। यह निश्चय ही मेरे लिए एक अभूतपूर्व, अकथनीय अनुभूति है जो सदैव स्मरणीय रहेगी ।”
अपूर्व आनन्दमिश्रित संतोष की आशा से उनका चेहरा दमक रहा था और नेत्रों में भी कृतज्ञता का भाव था। डॉ. कोठारी की भांति उनके दर्शन - वंदन कर और आदर्शमय जीवन को देख कर बिना वार्ता के ही प्रत्येक व्यक्ति परितृप्ति का अनुभव करता था ।
श्रद्धेय श्री माणकमुनि जी म.सा. के संथारे के समय आप श्री अपने सुशिष्यों सहित घोड़ों का चौक, जोधपुर में विराजित थे। पं. रत्न श्री हीराचन्द्र जी म.सा. (वर्तमानाचार्य) भी आप के साथ थे । एक दिन की बात । श्री हीराचन्द्रजी म.सा. प्रातःकाल शौचादि से निवृत्ति हेतु गोशाला के मैदान पधारे। निवृत्त होने के पश्चात् आप पुनः स्थानक लौट रहे थे कि मार्ग में कालटेक्स पेट्रोल पम्प के पास से गुजरते समय यकायक पीछे से आकर एक स्कूटर सवार आपसे टकरा गया। दुर्घटना में आप नीचे गिर पड़े तथा बेहोश हो गए।
संयोग ऐसा कि पीछे-पीछे ही स्वयं गुरुदेव भी शौचादि के पश्चात् पुनः स्थानक की ओर पधार रहे थे। जैसे ही आपने देखा कि श्री हीरा मुनि जी म.सा. बेहोशी की अवस्था में नीचे गिरे हुए हैं, आप समीप आए। अपने हाथों में उन्हें उठाया और हाथ का सहारा देकर स्थानक की ओर ले जाने लगे। अचरज की बात यह कि जो हीरा मुनि जी म.सा. बेहोशी की हालत में थे, अचेत थे, वे उस हालत में भी पता नहीं कैसे आपके हाथ का सम्बल पाकर चलने लगे और सकुशल घोड़ों के चौक तक पहुँच भी गए। स्थानक पहुँच कर वे पुनः बेहोश हो गए। थोड़े समय उपरान्त जब उन्हें पुनः होश आया तो उन्होंने बताया कि उन्हें तो कुछ याद नहीं कि वे किस तरह स्थानक तक पहुँचे ।
गुरुदेव संवत् २०२० का अपना पीपाड़ चातुर्मास सानन्द सम्पन्न कर यत्र-तत्र विचरण कर रहे थे। इसी क्रम में वे पहले जोधपुर फिर लूनी, रोहट, पाली, सोजत, चण्डावल, कुशालपुरा आदि गांवों से गुजरते हुए निमाज पधारे । उन्हीं दिनों निमाज के एक सुश्रावक, गुरुभक्त श्री मिश्रीमल जी खिवसरा के सुपुत्र श्री देवराज जी खिंवसरा किसी दैवीय प्रकोप से ग्रस्त होकर असामान्य व्यवहार करने लग गए थे। यंत्र, तंत्र मंत्र, अनुष्ठान इत्यादि अनेक उपाय किये गये, लेकिन कोई फायदा नहीं था। ऐसे में जब आचार्यप्रवर के निमाज पदार्पण की सूचना आपको मिली तो हृदय में फिर से आशा बंधी । उसी आशा के साथ रविवार, दिनांक १४ दिसम्बर १९६३ के दिन आप आचार्यप्रवर की सेवा में पुत्र सहित उपस्थित हुए और आचार्य भगवन्त के समक्ष सारी स्थिति रख दी । धैर्य पूर्वक