Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
• नहीं तो लोढ़ा जी विदेश चले जाते
आचार्यप्रवर श्रेष्ठ विद्वानों पण्डितों को समाज से जोड़ने में उत्सुक रहते थे। श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा एक || | ऐसे ही विद्वान हैं जिन्होंने जैन सिद्धान्त शाला जयपुर को संचालित कर जैन समाज को डॉ. धर्मचन्द जैन जैसे कई || रत्न प्रदान किये।
मैं श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा से मिलने केकड़ी गया। जब मैंने गुरुदेव की भावना से उनको अवगत कराया ! तो वे तुरंत ही अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हो गए।
उल्लेखनीय है कि लोढ़ा जी को इस समय यदि नहीं बुलाया जाता तो वे सुशील मुनि जी के साथ विदेश चले गए होते । आचार्य भगवंत की सूझबूझ थी कि उन्होंने ऐसे तत्त्वचिंतक विद्वान् को संघ से जोड़ा। यह तो एक उदाहरण हैं। उन्होने इस तरह अनेक योग्य लोगों को जोड़ा। • संत-सेवा का परिणाम
स्व. श्री पारसमल जी कोठारी २००८ के मेड़ता चातुर्मास में संघ-मंत्री थे। एक दिन दोपहर में कोठारी सा. भोजनादि कार्यों से निवृत्त होकर आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हुए। गुरुदेव ने आपको फरमाया कि भाई पारसमल पत्र लिखने हैं। यद्यपि कोठारी सा. को दुकान जाना था, फिर भी आप गुरुदेव का आदेश सुनकर पत्र लिखने बैठ गये। पत्र लिखते-लिखते शाम के चार बज गये। पत्र डाक में डालकर जब वे बाजार में पहुंचे तो बाजार में लगभग सन्नाटा छा चुका था । ग्राहकों की कोई चहल पहल नहीं थी। संकल्प विकल्प करते हुए कोठारी सा. दुकान पर पहुंचे ही थे कि कुछ ही देर में एक ग्राहक आया और लगभग १५००-२००० रुपयों का सामान खरीद कर ले गया। उस समय यह राशि बहुत बड़ी हुआ करती थी। उस दिन से पारसमल जी की यह धारणा बन गई कि भाग्य में लिखा हुआ कहीं जाता नहीं, फिर क्यों सन्त-सेवा से वंचित रहा जाय । कोठारी सा ने अपना जीवन संघ और समाज के लिये अर्पित कर दिया। • सरकारी पत्र नहीं आएगा
एक बार कोर्ट कचहरी और सरकारी पत्रों के चक्कर में दीर्घावधि तक गुरुदेव के दर्शन नहीं किये।
समय मिलने पर गुरुदेव के दर्शनार्थ पहुंचा तो गुरुदेव ने सहजता से पूछा “जतनजी क्या बात है, इस बार तो बहुत दिनों बाद दया पाली।" मैंने अपनी व्यस्तता का कारण पूज्य गुरुदेव के समक्ष जाहिर किया। गुरुदेव के श्रीमुख से प्रस्फुटित हुआ “अब कोई सरकारी पत्र नहीं आएगा" ___गुरुदेव का वचन सिद्ध हुआ और इसके बाद मुझे कोई सरकारी पत्र प्राप्त नहीं हुआ। मेरे कोर्ट कचहरी के चक्कर भी बंद हो गए। • आगे लारे ई जावांला
मेरे पिताजी श्री प्रेमराज जी मेहता की आचार्य श्री के प्रति अगाध श्रद्धा और अटूट भक्ति थी। एक बार पिताजी अत्यधिक अस्वस्थ हो गए तब गुरुदेव मेड़ता ही विराजमान थे। मैंने गुरुदेव को घर पधारकर मांगलिक श्रवण करवाने का निवेदन किया तो गुरुदेव ने मेरी भावभीनी विनती को स्वीकार किया और घर पधारे।