Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
६२७ पर गुरुदेव ने यह फरमाया कि यह तुम्हारे बस की बात नहीं है। परन्तु मेरी श्रीमती अडिग रहीं और बडी निश्चिन्तता से पाँच उपवास पच्चक्खाने की विनती करती रही। उनकी जिद और हार्दिक इच्छा देखकर पच्चक्खाण करवा दिये गये। इस जिद का नतीजा भी शीघ्र ही सामने आ गया। पाँच की यह तपस्या पूर्ण करने में उन्हें कितने कष्ट और शारीरिक वेदनाओं से जूझना पड़ा, यह मैं, मेरी श्रीमतीजी और मेरा परिवार ही जानता है। आचार्य भगवन्त तो सर्वदर्शी थे, पहले ही जानते थे कि यह तपस्या उनके बस की बात नहीं है, साथ ही गुरुदेव की सत्प्रेरणा के फलस्वरूप मेरी अठाई की तपस्या बड़ी शान्तिपूर्वक और निर्विघ्न सम्पन्न हुई। उस दिन से हमने यह समझा कि महापुरुषों के एक-एक शब्द में कितना यथार्थ, कितना पूर्वाभास छिपा रहता है। आचार्यप्रवर की दूरदर्शिता, भविष्य-दृष्टि और सत्य-वाणी के प्रति हम श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।
आचार की दृढता और विचार की उदारता आपके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ थीं। आप प्राय: कहा | करते थे कि आचार में मेरु पर्वत की तरह अडोल बने रहो और विचार में गंगा की पवित्रता लिये बहते चलो। आप सम्प्रदाय को एक परिवार मानते थे और कहा करते थे कि अपने परिवार के विकास के लिये सतत क्रियाशील रहो, पर किसी के लिये बाधक न बनो। दूसरे को गिराकर उठने का प्रयत्न न करो, सबको साथ लेकर चलो। इसी भावभूमि पर अन्य सम्प्रदायों के प्रति आपका सदा सहिष्णुता का भाव रहा। यही कारण है कि सभी सम्प्रदायों के लोगों की आप में पूर्ण आस्था एवं अगाध श्रद्धा-भक्ति रही।
समाज को धार्मिक, शैक्षिक व अन्य सर्वजन हितकारी प्रवृत्तियों की सतत प्रेरणा देते हुए भी आप सदैव आत्म-चिन्तन और धर्म-ध्यान में लीन रहते थे। एक क्षण भी आप प्रमाद में नहीं बिताते थे। चिन्तन मनन, जप-तप, स्वाध्याय में लीन रहते हए भी आप सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक भाई-बहिन, बाल. यवा वद्ध को उसकी
आने वाले प्रत्येक भाई-बहिन, बाल, युवा, वृद्ध को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार धार्मिक, सामाजिक, आध्यात्मिक प्रवृत्ति बनाने की प्रेरणा और नियम सिखाते थे। पात्र में रही हुई योग्यता देखकर, उसे उसी ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते, जिससे आपके सम्पर्क में आने वाला प्रत्येक
त आपके दर्शन कर आंतरिक प्रसन्नता और विशिष्ट शांति का अनभव करता था। आपकी दी हई प्रेरणा और कहे हुए वचन हृदय की गहराई तक स्पर्श करते थे और आपकी कोई भी बात भारभूत नहीं लगती थी। यही कारण है कि आपके सम्पर्क में आने वाले भाई-बहिनों के जीवन में रूपान्तरण आया है और वे सच्चे मानव और आदर्श नागरिक बनने की ओर अग्रसर हुए हैं।
आप जैसे ज्योतिर्धर आचार्य का मार्ग-दर्शन पाकर हमारा संघ ही नहीं, पूरा समाज, राष्ट्र और विश्व कृतकृत्य | हो उठा। आज पार्थिव रूप से आप हमारे बीच नहीं हैं, पर स्वाध्याय के रूप में दिया गया आपका सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। ४ अक्टूबर १९९९
-6, Chandrappa Mudali Street, Sowcar pet, Chennal