Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तथागत आचार्य श्री
श्री च
उन दिनों की बात है, जब मैं जिनवाणी का संपादक था। बीकानेर राज्य की असेम्बली में सेठ श्री चम्पालाल | जी बांठिया ने बालदीक्षा प्रतिबंधक बिल कानून बनाने के लिये रखा। सामयिक पत्र-पत्रिकाओं ने बिल के समर्थन में बहुत कुछ लिखा । मैंने भी कुछ लिखा। संयोग से छपने के पहले मैंने वह लिखा हुआ संपादकीय पूज्य श्री को | उनकी राय लेने के लिये बताया । उन्होंने अपनी स्पष्ट राय दी व कई पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिससे मेरी राय | पूर्णत: बदल गई तथा अभी तक मेरी यही मान्यता है कि धार्मिक मामलों में कानूनन सरकारी हस्तक्षेप उचित नहीं । चतुर्विध संघ को ही देश काल के अनुसार परिवर्तन संशोधन करना चाहिये ।
सेठ श्री चम्पालालजी बांठिया श्री जैन रत्न विद्यालय भोपालगढ के वार्षिक उत्सव में अध्यक्ष बनकर पधारे | थे। संयोग की बात है कि पूज्य श्री उन दिनों वहीं विराजते थे । उस दिन व्याख्यान में स्वावलंबन पर बोलते हुए श्री | बांठिया जी को संबोधित करते हुए गुरुदेव ने कहा- यहीं से कुछ मील जाने पर कार की मशीनरी में कुछ गड़बड़ | हो जाय व चलने से रुक जाय तो क्या आप गंतव्य स्थान पर पैदल ही पहुँच सकते हैं? दैवयोग से जब बांठिया जी | भोपालगढ़ से जोधपुर के लिये कार द्वारा रवाना हुये थे तो मार्ग में कार खराब हो गयी और फिर किसी अन्य | साधन से जोधपुर पहुँचना पड़ा ।
इस तरह की घटनाओं के बारे में मैंने एक दिन गुरुदेव से पूछ ही लिया कि क्या इन वारदातों की जानकारी आपको पहले से हो जाती है। गुरुदेव ने सहज स्मित भाव से यही बताया कि वे तो सामान्यत: व्यावहारिक नीति के | हिसाब से ही ऐसा कह दिया करते हैं। इन घटनाओं को चामत्कारिक रूप नहीं देना चाहिये ।
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