Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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भक्तों पर प्रभाव : संकलन
मौन से क्रोध पर नियन्त्रण
• श्री उगमराज भण्डारी
आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. से मेरा प्रत्यक्ष संपर्क जैतारण (राज.) में १९५३ में हुआ, जबकि मैं, वहाँ मुंसिफ नियुक्त था ।
द्वेष, माया, मोह, राग से छुटकारा पाना इतना कठिन नहीं लगता था, परन्तु क्रोध पर काबू नहीं हो रहा था । | मैंने अपनी समस्या आचार्य श्री के समक्ष रखी, उन्होंने इसका निदान मौन बताया। मैं प्रातः ९ बजे तक मौन रखने १९६१ तक चला (केवल दुर्घटनावश मुझे १६ माह अस्पताल में रहना पड़ा तब मौन का नियम नहीं रह | सका ।) इस नियम से मैंने बहुत कुछ पाया ।
लगा,
जैतारण में गुरुदेव के दर्शन मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना रही, जिससे मेरे जीवन में बहुत परिवर्तन
हुआ ।
धूम्रपान छूटा
एडवोकेट, १९/४४०
छावनी, सेटेलाइट रोड, अहमदाबाद
· कुन्दन सुराणा,
श्री
जाने का अवसर धूम्रपान करके गया
एक बार पाली से बस द्वारा, ताराचन्दजी सिंघवी के साथ, पीपाड़ के पास रीयां (सेठों की) मिला। वहाँ सभी के साथ मैंने भी क्रम से आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के दर्शन किये। मैं था, आचार्य श्री ने मेरे मुख की दुर्गन्ध से मुझे तुरंत धूम्रपान न करने का त्याग करा दिया, मै दंग रह गया । पर | कारण वश व मन की कमजोरी के कारण मैं वह नियम न निभा सका। कुछ माह बाद आचार्य श्री के दर्शन का | मौका आने वाला था । मैंने सोचा कि आचार्य श्री मुझे व्रत के बारे में पूछ न लें या साथी लोग शिकायत न कर दें, | मैंने धूम्रपान छोड़ दिया। तब से आज तक मेरा यह व्रत निभता आ रहा है । नियमित स्वाध्याय भी उसी महापुरुष | की देन है। ऐसे महान् साधक को पल-पल वन्दन ।
सत्यनारायण मार्ग, पाली
माँस-मदिरा का त्याग
श्री • तनसुखराज जैन
पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. का दूसरा जलगाँव - चातुर्मास था, मैं जलगाँव स्थानक के द्वार पर खड़ा था कि एक व्यक्ति गाँधी टोपी पहने रिक्शा में आया, और मुझसे आचार्य श्री के लिये पूछा । मैंने कहा कि आचार्य श्री बाहर ठेले मातरे (शौच के लिए पधारे हुए हैं। उसने कहा – ' कब आयेंगे।' मैने कहा" आधा घंटे से आयेंगे।” तब वह व्यक्ति चला गया।
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