Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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जीवन - निर्माण के कुशल शिल्पी
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. श्री अशोक कुमार जैन पूज्यपाद आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज के दर्शनों हेतु मैं १९८८ के सवाई माधोपुर चातुर्मास में उपस्थित हुआ, तो पूछा - कहाँ काम करते हो ? मैंने कहा - लेबर इंस्पेक्टर हूँ। फैक्टरी आदि में मजदूरों से वास्ता रहता है। आचार्य प्रवर ने फरमाया - "वहाँ पर निर्व्यसनता की प्रेरणा किया करो।” मानव जाति के प्रति उनका यह करुणाभाव मुझे छू गया।
आचार्य प्रवर का प्रभाव अद्भुत है। मैंने आलनपुर में एक बैरवा जाति के सज्जन से बात की तो ज्ञात हुआ कि वह प्रतिदिन आचार्य श्री की माला फेरता है। एक बैरवा जाति का भाई कुस्तला के पास चुनाई का काम करता था। मैंने उससे बात की तो वह बोला - अगले जन्म की क्या तैयारी है? उसके इस प्रकार के संस्कारों के पीछे आचार्य श्री की प्रेरणा रही है। मुझे जानकर आश्चर्य मिश्रित प्रमोद हुआ कि उसकी पुत्री को इच्छाकारेणं का पाठ || याद है। __मैं जब श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर में पढता था, तब संस्थान के सभी छात्र प्रतिवर्ष आपके दर्शनों हेतु जाया करते थे। सन् १९७८ की बात है। निमाज से जैतारण विहार करते समय रुककर आचार्यप्रवर ने संस्थान के छात्रों को दो-तीन श्लोक याद कराये थे, उनमें एक श्लोक था -
संसारदावानल-दाहनीरं साप्योहलिहरणे समीग्प् !
मायारसासागामारपीर, नमामि वीर गिरिसारधीरम ।। मुझे वे क्षण भी याद हैं जब आचार्य श्री को यह ज्ञात हुआ कि पोरवाल समाज में बच्चों का विवाह कम उम्र में कर दिया जाता है, तो उन्होंने हम सभी छात्रों (डॉ. धर्मचन्द, गौतमचन्द, धर्मेन्द्र कुमार आदि) को तीन-चार वर्ष ब्रह्मचर्य पालन करने का नियम कराया था।
-श्रम निरीक्षक आलनपुर, सवाई माधोपुर (राज.)