Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं इसी वर्ष मेरे चौथे पुत्र चि. विमल ने बी.काम. (ऑनर्स) पास किया था। वह सी. ए करना चाहता था। लेकिन अजमेर में श्री राधेश्यामजी डाणी के आर्टिकल की जगह खाली नहीं थी। उसने एस. के . बिगावत के जाना प्रारम्भ किया, लेकिन सन्तुष्ट नहीं था। मैं भी चिंतित था कि वह पढ़ना चाहता है और मैं व्यवस्था नहीं कर पा रहा
है
एक दिन रात्रि को आचार्यप्रवर के पास बैठा था। सहज बात चली, मैंने अपनी बात अर्ज कर दी। लेकिन कोई प्रत्युत्तर नहीं। देखिये , श्रद्धा आचार्यप्रवर के प्रति कैसे न हो। कुछ दिन ही पश्चात् श्रीमान् संपतराजसा डोसी |संयोजक स्वाध्याय संघ अजमेर दर्शनार्थ पधारे। आचार्यप्रवर की सेवा में खड़े थे। मैं भी अचानक पहंच गया संयोजक महोदय मुझे देखकर बोले - अमरचंद सा इस बार आप पर्युषण में सेवा देने नहीं पधारे।' ___ मैंने निवेदन किया कि भोजन-व्यवस्था की जिम्मेदारी के कारण नहीं जा सका। संयोजक महोदय ने फरमाया कि इस वर्ष त्रिचनापल्ली में वर्षों से अदालती कार्यवाही में स्थानक का कब्जा प्राप्त हुआ है। अत: वहाँ दोनों | संवत्सरी मनाने का निर्णय हुआ है।” इस बार पीपाड़ निवासी श्री जबरचंदजी कोठारी को भेजा। अब आपको जाना है। मैंने अर्ज किया मुझे पहले भी इनकारी नहीं थी, अब, भी नहीं, लेकिन भोजन-व्यवस्था की जिम्मेदारी के कारण असमर्थ हूँ। ____ यह वार्ता आचार्यप्रवर के समक्ष चल रही थी। बीच में हस्तक्षेप करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया “ऐ तो काम होता रहसी।” फौरन मैंने मेरे साथी श्री सरदारमलजी बोहरा को बुलाया और १५ दिन के लिये भोजन-व्यवस्था सम्हला दी। कार्यक्रमानुसार त्रिचनापल्ली गया। बहुत आनन्द रहा। कन्या कुमारी तक यात्रा की । वापस लौटते समय इन्दौर ठहरा।
श्री छीतरमलजी कोठारी अजमेर वाले उस समय इन्दौर रहते थे। चर्चा वार्ता में विमल के सी.ए. की बात चली। कोठारी जी ने कहा कि एम. एम. मेहता एण्ड कम्पनी से बात करो। मेहता जी की बात सफल रही। योग अपने आप बन गया। अजमेर आया। विमल से बात हुई। शीघ्र ही रवाना होकर इन्दौर गया एवं सी. ए किया।
सोचता हूँ कि न तो आचार्य श्री त्रिचनापल्ली जाने के लिये संकेत करते, न जाता, न ही विमल सी. ए करता।
बात संवत् २०४४ के चातुर्मास की है। मेड़तासिटी में चातुर्मास की विनति हेतु अजमेर संघ पहुंचा। मंत्री श्री | जीतमलजी ने विनति सेवा में अर्ज की। आचार्यप्रवर ने फरमाया-“ मैं लाखन कोटड़ी से बंधा हुआ नहीं हूँ।” बाहर |आकर मैंने जीतमलजी से चर्चा की एवं बताया कि अन्य संतों की तरह आप इनके विचारों में परिवर्तन नहीं करा
सकोगे। लाखन कोटडी नहीं विराजे तो फिर क्या फायदा? जीतमलजी ने कहा तुम देखे जाओ मैं लाखन कोटड़ी | ले आऊंगा। चातुर्मास स्वीकृत हुआ। आचार्यप्रवर महावीर कॉलोनी पुष्कर रोड़ ही विराजे । ऐसे महान् योगी को शत-शत वन्दन ।
-३१०/४, महावीर भवन के पास, लाखन कोटड़ी
अजमेर (राज.) ३०५००१