Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं समाजोपयोगी बनाने में सदैव प्रयत्नशील रहते थे। वे कहते थे -
___हीरा मुख से कब कहे लाख हमारो मोल। इस प्रकार के व्यक्तियों से एक ऐसा स्वाध्याय संघ बन गया जिसके माध्यम से दूर-दूर के स्थानों पर भी धर्म आराधना का मार्ग खुल गया। उनकी यह शैली इतनी अधिक कारगर सिद्ध हुई कि वे स्वाध्याय और सामायिक के || प्रेरक के नाम से अमर हो गये।
सभी संघों के लिये स्वाध्याय एवं सामायिक के लिये वे मार्गदर्शक के रूप में सिद्ध हुए। आज उनके आध्यात्मिक विचार कार्यरूप में परिणत होते हुए सफल लक्षित होते हैं। . त्रिकालशरणं भवभवशरणं सद्गुरुशरणम् ।
-पूर्व प्रधानाचार्य, छोटी कसरावद जिला-खरगोन (म.प्र.) ४५१२२८