Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं करने हेतु प्रेरित किया। जून १९९० में आचार्य श्री महावीर भवन सरदारपुरा, जोधपुर में विराज रहे थे, तब एक्यूप्रेशर प्रशिक्षण शिविर हेतु बम्बई से जय भगवान एक्यूप्रेशर अन्तर्राष्ट्रीय के प्रमुख आचार्य श्री विपिन भाई शाह भी जोधपुर पधारे हुये थे। मैं श्री शाह को एक्यूप्रेशर के सम्बन्ध में विशेष जानकारी सन्तों को देने के लिये ले गया, तब आचार्य श्री स्वयं इस पद्धति को समझने हेतु पास में विराज गये। इतने सरल एवं सहज व जिज्ञासु थे पूज्य गुरुदेव।
आचार्य श्री के सान्निध्य में सोजत सिटी में फरवरी १९९१ के अंतिम सप्ताह में जाना हुआ। उस समय मैंने आचार्य श्री को जोधपुर में डॉ. देवेन्द्र वोरा द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में कैंसर जैसे असाध्य रोगों के निदान
और उपचार के बारे में एक्यूप्रेशर जैसी अहिंसक पद्धति के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा की। आचार्य श्री ने अपनी सारी शिष्य-मंडली के समक्ष सारी बात सुनी एवं मुझे संत-सतियों को इस विधि से परिचित करा उनके साधनामय जीवन में सहयोग देने की प्रेरणा दी। उन्हीं के आशीर्वाद से आज स्वावलंबी अहिंसात्मक चिकित्सा के क्षेत्र में मैं कुछ कार्य कर पा रहा हूँ।
वास्तव में आचार्य श्री का जीवन अपने आपमें विराट् था। जिस उत्साह एवं सजगता से साधना के पथ पर आप आगे बढ़े, उसी उत्साह से जीवन के अन्तिम समय में मृत्यु को महोत्सव में बदल दिया। संथारे की अवस्था में अत्यधिक शारीरिक दुर्बलता के बावजूद तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं कर समाज तथा शिष्य समुदाय से पूर्णरूपेण निस्पृही बन गये, जैसे किसी से कोई सम्बन्ध अथवा परिचय था ही नहीं।
__आप अन्तिम समय देह में रहते हुये देहातीत हो गये। आचार्य श्री के सम्पूर्ण जीवन में शुभ भावनाओं के निम्नाङ्कित शब्द गुंजित होते थे
सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् ।
माध्यस्थभावं विपरीतवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु दव।। ऐसे परम श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. को शत शत वन्दन ।
-चोरडिया भवन, गोल बिल्डिंग रोड जोधपुर (राज.)