Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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सामायिक के महान् प्रेरक-आचार्यश्री
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• श्री चुन्नीलाल ललवाणी संवत् २०१६ में आचार्यप्रवर १००८ श्री हस्तीमल जी म.सा. का जब शिष्य मण्डली के साथ जयपुर में प्रवेश ! हुआ तो आचार्य श्री ने सामायिक संदेश के रूप में एक भजन दिया, जो सारे देश में गूंज उठा है, जिसमें जीवन को। ऊँचा उठाने की प्रेरणा मिलती है
जीवन उन्नत करना चाहा तो, सामायिक साधन कर लो।
आकुलता से बचना चाहो तो, सामायिक साधन कर लो।। मुझे यह भजन बहुत ही पसंद आया। जहाँ भी मैं जाता, इस भजन को हर जगह गाता रहता, बड़ा ही आनन्द आता। पहले 'ॐ शान्ति प्रभु जय शान्ति प्रभु' प्रार्थना बोलता, उसके बाद इस भजन को गाता। इसी में मैं भाव विभोर हो जाता।
कार्तिक शुक्ला पंचमी (ज्ञान पंचमी) को मैंने आचार्य श्री से मांगलिक मांगी तो आचार्यश्री ने फरमाया कि क्या मांगलिक कोई ऐसे ही मिलती है? नथमल जी हीरावत को नियम लेते देखकर मैंने आचार्य श्री से निवेदन किया कि मुझे भी ज्ञान पंचमी का उपवास करा दीजिए। उस दिन गुरुदेव ने उपवास के साथ नियमित सामायिक करने तथा दयाव्रत का भी नियम करा दिया। ज्ञानपंचमी का उपवास करते हुए लम्बा समय बीत गया है, इससे मुझे शारीरिक, मानसिक, आत्मिक सब प्रकार की शान्ति प्राप्त हुई है।
कार्तिक शुक्ला पंचमी से पूनम तक संवत् २०१६ के जयपुर चातुर्मास में ५००० सामायिक का लक्ष्य रखा गया, जो सफलतापूर्वक पूर्ण हुआ। इससे मेरे मन में सामायिक-संघ की स्थापना करने की भावना उत्पन्न हुई। चातुर्मास पूर्ण होने पर विहार के समय ११ व्यक्तियों ने ५ वर्ष तक स्थानक में नियमित सामायिक करने का नियम लिया। इस तरह सामायिक संघ का प्रारम्भ हुआ। सामायिक संघ के सदस्यों के लिए कुछ नियम बनाए गये - सप्त-कुव्यसनों से दूर रहें, कूड़ा तौल माप न करें, वस्तु में मिलावट न करें, स्थानक में नियमित सामायिक करें, उसमें कम से कम २० मिनिट स्वाध्याय करें, हिंसा-झूठ-चोरी आदि से दूर रहें। सैलाना चातुर्मास में आचार्य श्री ने अखिल | भारतीय जैन सामायिक संघ की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा वहीं पर प्रथम सामायिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। | इसके पश्चात् जहाँ भी आचार्य श्री पधारे बालोतरा, बाड़मेर भोपालगढ़, पीपाड़ आदि सर्वत्र सामायिक संघ का गठन हुआ। आचार्यप्रवर की कृपा से मैं स्वाध्याय संघ से भी जुड़ा तथा पर्युषण में जैतारण, बेतुल, मद्रास, सवाईमाधोपुर आदि स्थानों पर धर्माराधन हेतु गया। वहाँ दिनभर सामायिक साधना करने में तथा सैंकड़ों श्रावक-श्राविकाओं को सामायिक कराने में मुझे आत्मानन्द का अनुभव हुआ। सामायिक स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार के लिए प्रेरणा करते हुए गुरुदेव ने मुझसे कहा - "तू भारतीय बीमा निगम का दलाल है, इसलिए त धर्म की दलाली भी अच्छी तरह से कर सकता है।” इससे मुझे सामायिक संघों की स्थापना करने की धुन लग गयी। मैंने लघु सर्वतोभद्र तप का आराधन भी किया।
यह तपस्या मैंने १ वर्ष आयम्बिल से तथा ६ वर्ष एकाशन तप से की और यह प्रतिज्ञा की कि जब तक १०० सामायिक संघ नहीं बनेंगे तब तक मैं यह व्रत करता रहूँगा। मेरी भावना के अनुसार भीलवाड़ा, जैतारण, डबोक,