Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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| उपमित करने के लिये शब्दों की कमी है। आप अध्यात्म सूर्य थे । आप हर हालत में प्रसन्नचित्त रहते थे ।
आप अपनी साधु-मर्यादाओं के प्रति सदैव सचेत थे । मर्यादा का उल्लंघन आपको पसन्द नहीं था ।
मुझे सन् १९६९ के अन्त में आपकी सेवा में पहुँचने का सौभाग्य श्री जतनराज जी सा मेहता, मेड़ता सिटी
| वालों के माध्यम से प्राप्त हुआ। जब मैं आपकी सेवा में पहुँचा तो वहाँ उपस्थित श्रावकों ने मेरी कृषि वेश भूषा | देखकर व्यंग किया । यह किसान लड़का क्या गुरुदेव की सेवा करेगा। पर भाई मेहता सा. का निश्चय ही कहिए कि मैंने गुरुदेव की सेवा में लगभग २० वर्ष के लम्बे काल का लाभ उठा पाया ।
आचार्यश्री समाज को निर्व्यसनी एवं प्रामाणिक देखना चाहते थे। पूज्य श्री शोभा चंद जी म.सा. शताब्दी साधना समारोह अजमेर एवं भगवान महावीर निर्वाण शताब्दी समारोह जोधपुर में लक्ष्य से अधिक व्रत- प्रत्याख्यान | करवा कर आपने जैन संघ को समुज्ज्वल बनाया। आप प्रबल पुरुषार्थी थे । प्रातः से सायं तक आपकी लेखनी सदैव | चला करती थी। प्रमाद को आप अपने पास आने का अवकाश ही नहीं देते थे। मुझे एक कवि के वाक्य स्मरण आ रहे हैं
जिसने पहचानी न कोई, कद्र' अपने वक्त की ।
कामयाबी उसको हासिल हो सकती नहीं कभी ।।
आपने समय के मूल्य को पहचान लिया था और हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल की थी ।
नारी उत्थान में आपका विशेष योगदान रहा । अपने संघ में महिलाओं के बराबर की भागीदारी प्रदान की | और अखिल भारतीय श्री जैन रत्न श्राविका संघ का श्री गणेश हुआ। इससे नारी जाति के लिये धर्म क्षेत्र में आगे | बढने का नया आयाम खुला। नवयुवकों एवं बालकों को भी आपने प्रेरित किया ।
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आप दीन-दुःखी मानव को दुःखी हालत में देखकर द्रवित हो जाया करते थे । आपकी इस दीनोद्धार भावना के अनुरूप श्री भूधर कुशल साधर्मी कल्याण कोष की स्थापना हुई, जहाँ से प्रतिमाह सैंकडों असहाय भाई-बहिनों को सहयोग प्रदान किया जा रहा है।
आपका ज्ञान-बल बड़ा विशिष्ट था इस सन्दर्भ में मुझे एक घटना याद आ रही है । पूज्य श्री ने पश्चिमी राजस्थान के आगोलाई से ढांढणिया ग्राम की ओर विहार किया । ३ जनवरी १९६२ माघ कृष्णा ३ सं. २०२८ सोमवार को लगभग ५ बजे सायंकाल आगोलाई के श्रावक श्री चंदनमल जी गोगड का पाँच वर्षीय बालक अचानक घर से गुम हो गया। समूचे आगोलाई ग्राम व्यक्तियों ने रात्रि में हाथों में लालटेनें लेकर आस-पास का सारा जंगल ढूंढ लिया, पर इस अबोध शिशु का कहीं पता नही लगा। पूरा गांव उदासीन हो गया। क्योंकि गोगड परिवार गाँव वालों की हमदर्दी में सदैव अग्रणी रहता आया था। जब बच्चे का कहीं पता नहीं लगा तो कतिपय | ग्रामीण ४ जनवरी को प्रातः ९ बजे के लगभग आचार्य श्री की सेवा में पहुंचे और रात से प्रातः तक की सारी घटना सम्मुख निवेदन की । प्रत्युत्तर में आचार्य श्री ने फरमाया " चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है, पुण्य व धर्म के प्रताप से बच्चा सकुशल मिल जायेगा ।”
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स्थानीय स्कूल के प्रधानाध्यापकजी एवं बच्चों का समूह सहकारी फार्म के आगे जंगल में निकल गया । वहाँ | देखते हैं कि एक चट्टान पर बच्चा सो रहा है। उसे देखा तो वे पुलकित हो उठे एवं गाँव में हर्ष की लहर दौड़ गई। गुरुदेव की वाणी सत्य सिद्ध हुई ।
'आए। पूरे गांव में |