Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड आप से देवता भी डरते थे। जिसमें निम्न गुण होते हैं, उनसे देवता भी भय खाते हैं।
उद्यम: साहसं धैर्य, बलं बुद्धिः पराक्रमः ।
षडत यत्र विद्यन्ते, तस्माद् देवोऽपि शकते ।। उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि और पराक्रम ये ६ गुण जिनके पास होते हैं, उनसे देवता भी डरते हैं। गुरुदेव में || | ये सभी गुण थे।
सिंवांची पट्टी का ऐतिहासिक झगड़ा आपके साहस एवं बुद्धि की सूझ से ही निपट पाया था।
आपने अनेक स्थानों पर पशुबलि का निषेध करवाया। राजस्थान में मूण्डिया एवं मध्य प्रदेश के अनेक | स्थानों पर अभी भी आपके पराक्रम की यशोगाथाएँ सुनने को मिलती हैं।
आप आयुर्वेद पर विशेष विश्वास रखते थे । मंत्र, तंत्र, यंत्र, काल-ज्ञान, स्वर विज्ञान, शकुन-शास्त्र, स्वप्न शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र एवं हस्तरेखा विज्ञान के साथ ज्योतिष एवं खगोल के भी वेत्ता थे। साथ ही फक्कड सन्त थे। जैन आगमों के गहन अन्वेषक एवं जैनेतर साहित्य के पारगामी विद्वान् थे। जयपुर के महाराजा श्री मानसिंह जी ने जैन सन्तों के सम्बन्ध में कहा है
काहू की न आस राखे, काहू से न दीन भाखे। करत प्रणाम जाको राजा राणा जेवड़ा। सीधी सी आरोगे रोठी, बैठा बात करे मोटी। ओढन को देखो जाके, धोळा सा पछेवड़ा । खमा खमा करे लोग, कदीयन राखे शोक । बाजे न मृदंग चंग, जग मांहि जेबड़ा। कहे राजा 'मानसिंह' दिल में विचार देखो।
दुःखी तो सकल जन, सुखी जैन सेवड़ा ।। उक्त कथन आपके जीवन में अक्षरश: चरितार्थ होता था।
आपकी सेवा में राष्ट्र नायक, उच्च राज्याधिकारी, श्रीमंत, विद्वान्, न्यायाधिपति, उद्योगपति, व्यापारी, राज कर्मचारी, कृषक, व्यवसायी, साधर्मी एवं अन्य धर्मी गरीब-अमीर याचक-भाजक सभी समानरूपेण पहुँचते थे। अनेकों की आकांक्षाओं की पूर्ति भी सहज रूप से होती थी।
पूर्वी राजस्थान के सवाईमाधोपुर एवं भरतपुर जिलों में बसने वाले पोरवाल व पल्लीवाल जैनों में अविद्या एवं आर्थिक विपन्नता की स्थिति से आपका हृदय द्रवित हो गया। आपने इस क्षेत्र में शिक्षा का सूत्रपात कर नया दिशाबोध दिया। फलस्वरूप क्षेत्र में धार्मिक चेतना का संचार हुआ। सम्पन्नता के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रगति
आचार्य श्री के जीवन में अतिशय था। आचार्य श्री की सेवा में चौथ का बरवाड़ा से श्रावक गोविन्द राम जी जैन अलीगढ-रामपुरा पधारे और कहा, 'अन्नदाता ! बीनणी की आँखों की ज्योति अचानक चली गई।' गुरुदेव ने अलीगढ-रामपुरा स्थानक से मांगलिक प्रदान किया और दूरस्थ बीनणी की आँखों में नव ज्योति का संचार हुआ। ___एक बार मैं गुरुदेव के साथ बर - मारवाड़ के स्थानक में गुरु सेवा में रत था। सांयकाल एक बडे से बिच्छु ने | मेरे पाँव में डंक मार दिया। मेरे पैर में वेदना शुरु हुई। गुरु महाराज प्रतिक्रमण में थे। मैंने कहा गुरुदेव बिच्छु ने डंक मार दिया, पाँव फट रहा है। उन्होंने मांगलिक सुनाया। थोड़ी देर में पैरों में झनझनाहट सी हुई और नींद आ