Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
५४५
की अपार भीड़ कतारबद्ध खड़ी थी अपने आराध्य के श्रीचरणों में । पर आचार्य श्री आत्मस्थ थे, जप- साधना में लीन | थे। उन्हें न किसी के प्रति राग था, न द्वेष । शरीर का ममत्व वे छोड़ चुके थे। एक-एक कर दर्शनार्थी पंक्तिबद्ध उनके निकट आते, नतमस्तक हो वन्दन करते और मौन आशीर्वाद ले अपने को धन्य समझते । निमाज तीर्थधाम बन | गया । धर्मनिष्ठ श्रद्धानिष्ठ उदारहृदय भण्डारी परिवार एवं सकल निमाज जैन श्रीसंघ ने अपने आराध्य गुरुदेव की | भक्ति में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, आगन्तुक दर्शनार्थियों के आतिथ्य सत्कार में पलक-पांवड़े बिछा दिये। निमाज का यह अंचल अपने लोकरंग में अन्तर्राष्ट्रीय हो उठा। देश-विदेश से भावुक भक्त बड़ी संख्या में खिंचे चले आये । २१ अप्रैल, रविवार को इस युग का दिव्य दिवाकर समाधिपूर्वक परमात्म-ज्योति में समा गया।
पार्थिव रूप में आचार्य श्री अब हमारे बीच नहीं हैं। पर उनका संदेश कण-कण में व्याप्त है । वे प्रेरणा बनकर युगयुगों तक हमें अनुप्राणित करते रहेंगे, स्फुरणा बनकर हमें जगाते रहेंगे, हम पर उनके अनन्त उपकार हैं, हम उनसे उऋण नहीं हो सकते । वे ऐसे महासागर थे, जिसे कोई तैराक पार नहीं कर सकता, वे ऐसे असीम आकाश थे, जिसे | कोई पक्षी लांघ नहीं सकता । किसमें ताकत है जो उनके गुणों की थाह ले सके ? उन प्रज्ञापुरुष को कोटि-कोटि प्रणाम । (जिनवाणी के श्रद्धांजलि अंक से साभार)
·