Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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विद्यालय, छात्रालय, पुस्तकालय, ज्ञान भण्डार आदि विविध जनहितकारी प्रवृत्तियाँ सक्रिय बनीं और प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी संख्या में भाई बहिन इनसे जुड़े । अ.भा. जैन विद्वत् परिषद् के रूप में विद्वानों का एक संगठन भी आचार्य श्री की प्रेरणा से बना, जिसके साथ श्रीमन्त और सामाजिक कार्यकर्ता भी जुड़े, ताकि समाज की ज्वलन्त समस्याओं पर सभी दृष्टियों से विचार हो सके और उनके समाधान का रास्ता खोजा जा सके। पीपाड़ में आयोजित विद्वत् संगोष्ठी के अवसर पर यह विचार चर्चा चली कि धर्म जीवन में कैसे उतरे ? अहिंसा के विधायक पक्ष पर बल दिया गया। उस समय राजस्थान विशेषकर मारवाड़ में भयंकर अकाल था । मूक प्राणियों की रक्षा के लिए मारवाड़ अकाल सहायता कोष की स्थापना हुई जिसके माध्यम से पांच लाख पशुओं को बचाया गया ।
आज आचार्य श्री पार्थिव रूप से हमारे बीच नहीं हैं, पर समाज में अहिंसा, सेवा, ज्ञान और क्रिया की जो | ज्योति उन्होंने प्रज्वलित की, उसमें उनकी प्रेरणा, उनका प्रकाश और आशीर्वाद अक्षुण्ण बना रहेगा। मुझे उन्होंने जो अन्तिम निर्देश दिया, वही मेरे जीवन की सबसे बड़ी निधि है । मुझे उस ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहे, यही अभ्यर्थना है । उस फक्कड़ सन्त, जिसकी महक अनन्त, के चरणों में कोटिशः वन्दन ।
(जिनवाणी के श्रद्धाञ्जलि विशेषाङ्क से साभार)
- सेवानिवृत्त अध्यक्ष, सेबी, बी-५, महावीर उद्यान पथ, बजाज नगर, जयपुर ३०२०१५