Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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पंचाचार में अप्रमत्त एवं शास्त्रार्थ में बेजोड़
श्री कन्हैयालाल लोडा
आचार्य की विशेषता होती है कि वह स्वयं तो पंचाचार का उत्कृष्ट, शुद्ध एवं निरतिचार पालन करता ही है, | साथ ही जिस गच्छ, संप्रदाय, संघ का वह आचार्य है उसके साधकों को समुचित आचार पालन कराना भी उसका | दायित्व होता है । पूज्य आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज साहब ने इस दायित्व का निवर्हन पूर्ण निष्ठा के साथ | किया। साथ ही पंचाचार को समृद्ध व दृढ बनाने में महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय योगदान भी किया। इस दृष्टि से | आप सामान्य आचार्य से बढ़कर महान् आचार्य थे। पंचाचार हैं- (१) ज्ञानाचार (२) दर्शनाचार (३) चारित्राचार (४) | तपाचार और (५) वीर्याचार |
• ज्ञानाचार के आराधक
आचार्य श्री ज्ञानाचार के उत्कृष्ट आराधक थे । आपका आगमज्ञान अगाध था । आप प्रतिदिन नियमित रूप | से आगम का स्वाध्याय करते थे । आपने अनेक आगमों का अनुवाद व टीकाएं की। ज्ञानाचार के सजग प्रहरी होने क साथ आपमें सत्यान्वेषण की भी प्रवृत्ति थी । एक बार आपने तात्त्विक चर्चा के दौरान मुझसे कहा- “ तत्त्वार्थसूत्र में सम्यक्त्व मोहनीय, हास्य, रति एवं पुरुषवेद को पुण्य प्रकृति कहा गया है। किन्तु मोहनीय कर्म की प्रकृति तो पुण्य होती नहीं । ये चारों तो मोहकर्म से सम्बद्ध हैं। दिगम्बर तत्त्वार्थ सूत्र में इन चारों का उल्लेख नहीं है । अत: | यह शोध की जानी चाहिए कि श्वेताम्बर मत द्वारा मान्य तत्त्वार्थसूत्र में इन चारों प्रकृतियों का समावेश पुण्य प्रकृति | के रूप में कैसे हो गया ?” यह थी आपकी तत्त्वज्ञान के प्रति सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति ।
आचार्य श्री कुशल प्रवचनकार एवं श्रेष्ठ लेखक थे । आपने प्रारम्भिक वर्षों में धर्म, आगम, दर्शन, नीति, कर्म | सिद्धान्त, तत्त्व ज्ञान आदि सभी विषयों पर लेखनी चलाई । आपके लेख हृदयस्पर्शी, मार्मिक तथा प्रेरणाप्रद हैं । मुझे लेख लिखने की प्रेरणा आपसे ही प्राप्त हुई । वस्तुतः मुझे लिखना सिखाया ।
अल्पवय में ही आपकी विद्वत्ता का प्रभाव देश के दूरस्थ भागों में फैलने लगा था। आपकी सूझबूझ एवं शास्त्रज्ञान की कीर्ति का एक उदाहरण केकड़ी का शास्त्रार्थ है । इस शास्त्रार्थ की घटना यहाँ दी जा रही है ।
केकड़ी में शास्त्रार्थ का परचम
अजमेर सम्मेलन के पूर्व संवत् १९९० में आचार्य श्री शाहपुरा के सब सेशन जज श्री सरदारमलजी छाजेड़ के | निवेदन पर बनेड़ा से विहार कर शाहपुरा पधारे। वहाँ से अन्य क्षेत्रों को फरसते हुए केकड़ी पधारे । उन दिनों केकड़ी व इसके चारों ओर के क्षेत्र में बड़ा विषाक्त साम्प्रदायिक वातावरण था । उस समय उस क्षेत्र में जो स्थानकवासी सन्त- सती आते उन्हें दिगम्बर एवं मूर्ति पूजक समाज की ओर से ठहराने, आहार- पानी देने का निषेध कर रखा था। | उनके साथ अभद्र व्यवहार किया जाता तथा अपमानित व परेशान किया जाता था। दिगम्बर समाज की ओर से | श्वेताम्बर समाज के आगमों पर यह आरोप लगाया गया एवं प्रसारित किया गया कि इनमें भगवान महावीर ने मांस खाया, ऐसा लिखा है, अतः ये आगम अमान्य हैं। इस आरोप का केकड़ी के स्थानकवासी समाज ने 'रेवतीदान
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