Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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___ संथारे के समय करीब एक महीना निमाज में गुरुदेव के सान्निध्य में बीता। संथारे के समय उनकी समाधि के बारे में आचार्य देवनन्दी (छठी शताब्दी) द्वारा रचित श्लोक लिखता हुआ उस महान् आत्मा को आत्मभाव के शत-शत प्रणाम करता हुआ विराम लेता हूँ।
किमिदं कीदृशं कस्य कस्मात्क्वेत्यविशेषयन्
स्वदेहमपि नावैति योगी योगपरायणः ।। ध्यान में लगा हुआ योगी यह क्या है ? कैसा है ? किसका है ? क्यो हैं? कहाँ है ? इत्यादि विकल्पों को || न करते हुए अपने शरीर को भी नहीं जानता।
क्या कैसा किसका, किसमें, कहां, यह आतम राम । तज विकल्प निज देह न जाने, योगी निज विश्राम ॥
-c/o सुदर्शन पल्सेज H2MTDC, जलगांव