Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
५८७ भोपालगढ महासती जी के दर्शनार्थ गये। वहाँ दिनभर सेवा करने के बाद रात को आचार्यप्रवर के दर्शनार्थ रवाना हो रहे थे, तभी महासतियाँ जी ने मना किया कि रात को यहीं पर आराम करो और सुबह नागौर दया पाल लेना। मगर दर्शनों की उत्कंठा ने रात को ही रवाना कर दिया। सभी लोग रात को ही कार द्वारा भोपालगढ़ से नागौर के लिये रवाना हुए। अचानक ध्यान आया कि रास्ता भटक गए हैं और कार बजाय सड़क के चलने के घास और मिट्टी पर चल रही है। चारों ओर देखने पर कहीं पर भी सड़क दिखाई नहीं दे रही थी। उस भयानक काली रात में जंगल में औरतों व बच्चों के साथ बम्ब साहब को भी चिन्ता होना स्वाभाविक था। उन्होंने गुरु हस्ती का चिन्तन किया। कार के चलते हुये सामने आगे साइकिल पर लाल साफा बांधे एक व्यक्ति दिखाई दिया। साइकिल सवार के पास गाडी धीरे कर बम्ब साहब ने रास्ता पूछा। साइकिल रोक कर उसने कहा कि भाई ! आप गलत चल रहे हैं। रास्ता भटक गए हैं। यह रास्ता इधर नहीं है। हाथ से इशारा करते हुये उसने कहा कि रास्ता उधर है और वह व्यक्ति वहाँ से रवाना हो गया। गाड़ी तेज कर उस व्यक्ति को इधर-उधर देखा। पर वह व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। फिर कार को वापस घुमाया कि सड़क दिखाई दी। सबके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और सबके मुख पर एक अजीब खुशी छा गयी। उस कहने वाले व्यक्ति को ढूंढते रह गए, मगर वह कहीं पर भी दिखाई नहीं दिया। रात को नागौर पहुँच गये।
-३, मेरु पैलेस होटल के पास, सवाई रामसिंह रोड़ जयपुर (राज.)