Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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है और उन्हें अपने संघ में, आचार-व्यवहार में बराबर का दर्जा दिया है। बड़े बड़े विद्वान् और श्रीमन्त उस युवक मुनि के चरण-स्पर्श करते हैं । जातिवाद के विरुद्ध महावीर ने जो परम्परा कायम की, उसी के अनुरूप यह कार्य हुआ ।
आचार्य श्री नैतिक व प्रामाणिक जीवन जीने पर विशेष बल देते थे। उनकी बराबर यह प्रेरणा रहती थी कि धर्म जीवन में उतरे, व्यवहार में प्रगट हो । धर्म दस्तूर रूप में न होकर आचरण रूप में हो। आचार्य श्री क्रियाकाण्ड में धर्म नहीं मानते थे । ईमानदारी, सादगी और नैतिकता के रूप में धर्म प्रतिफलित हो, ऐसी उनकी प्रेरणा रहती थी । यदि ये गुण किसी व्यक्ति में हैं, उनकी दृष्टि में वह व्यक्ति धार्मिक और नैतिक था। मेरे चाचा श्री जसवन्तराजजी | मेहता ऐसे ही व्यक्ति थे । आचार्य श्री उन्हें इसी भाव से देखते थे । वे जीवन पर्यन्त ईमानदार, नैतिक, प्रामाणिक और सादगी प्रिय रहे ।
आचार्य श्री पात्र की योग्यता और सामर्थ्य देखकर धर्माराधन के क्षेत्र में उनके अनुरूप बढ़ने की प्रेरणा देते थे । यही कारण है कि उनके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग है। क्या धनी, क्या | उद्योगपति, क्या वकील, क्या न्यायाधीश, क्या डाक्टर, क्या इंजीनियर, क्या अध्यापक, क्या अधिकारी ।
आचार्य श्री अत्यन्त करुणाशील और दयालु थे । अहिंसा और प्रेम उनके रग-रग में व्याप्त था । प्राणी मात्र के प्रति उनके मन में दया का भाव था । उनके मुख-मण्डल पर सदैव प्रसन्नता का भाव, करुणा का भाव, सौम्य भाव | व्याप्त रहता था। जो भी उनके सम्पर्क में आता, सान्निध्य पाता, भीतर से भीग उठता, सहृदय बन जाता । उसकी पराकाष्ठा समाधिमरण के समय पहुँची। उनके विशिष्ट त्याग व करुणाभाव से वातावरण ऐसा विशुद्ध हुआ कि ईद की नमाज पढ़कर सैकड़ों मुसलमान आचार्य श्री के दर्शन को आये तथा यह प्रण लिया कि आचार्य श्री के समाधिमरण तक किसी पशु का वध नहीं होगा। इस प्रण को उन्होंने पूर्ण रूप से निभाया। एक तरफ आज | साम्प्रदायिकता की बात होती है, दूसरी तरफ इतर सम्प्रदाय के लोग भी प्रभावित होते । यहाँ यह भी कहना | प्रासंगिक होगा कि आचार्य श्री की अन्तिम यात्रा में श्मशान तक पहुंचाने में हजारों मुसलमान थे। इस यात्रा में करीब एक लाख लोग शामिल थे जिसमें आधे से अधिक जैनेतर थे। इसी करुणा की बात को आगे बढ़ाते हुए निमाज की ही सम्बन्धित एक घटना का उल्लेख आवश्यक है।
जब कसाइयों के प्रण की बात मैंने सुनी तो दूसरे दिन निमाज पहुँचने पर मैं सात कसाइयों के घर गया। उनसे काफी चर्चा हुई। वे स्वयं यह मानते हैं कि उनका काम अच्छा नहीं है, पर पेट भरने व परम्परा के कारण ऐसा करते हैं । एक ने यह कहा कि उसने हजारों जानवर कटवा दिए, पर उसके घर पर कोई बरकत नहीं हुई, वे वहीं के वहीं है। एक- दूसरे व्यक्ति ने बताया कि २१ अप्रेल को ३२५ बकरे गाँवों से निमाज में एकत्र किये जायेंगे और उन्हें कटने के लिये बम्बई भेजा जायेगा। संघ के कई लोगों के मन में विचार आया कि ऐसे महान् मृत्युंजयी संत के आसपास का कोई प्राणी कैसे वधित हो सकता है ? अतः तत्काल निर्णय हुआ कि सारे बकरे संघ द्वारा खरीद लिये | जायें। इसके लिये कुछ व्यक्ति सारी राशि देने को तैयार थे। दूसरे दिन व्याख्यान में जब इसकी चर्चा हुई तो सैकड़ों व्यक्तियों ने सारी राशि दे दी। ऐसा लगा मानो एक घंटे तक रुपये पैसों की वर्षा होती रही। शाम साढ़े | छह बचे तक सारे बकरे संघ द्वारा मुक्त करा दिये गये । आचार्य श्री के महाप्रयाण के दो घंटे पूर्व सभी प्राणियों को अभयदान दे दिया गया था ।
आचार्य श्री का बराबर इस बात पर बल रहा कि समाज में हिंसा का व्यावसायीकरण न हो, बढ़ती हुई हिंसा
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