Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं बहुत बड़ी भूल की थी। एक को ज्ञान की गंगा एवं दूसरे को क्रिया की गंगा कहा था, परन्तु गजकेसरी आचार्य श्री | हस्तीमलजी म.सा. तो ज्ञान और क्रिया दोनों के संगम हैं।"
मेरे परदादा सा. श्री कन्हैयालालजी डागा आचार्य प्रवर श्री शोभाचन्द जी म.सा. के दर्शनार्थ जोधपुर पधारे तो सहज प्रश्न किया – “पूज्य सा. आपके पीछे परम्परा के बारे में सोचा ?" पास में बाल मुनि हस्तीमलजी महाराज विराज रहे थे। उनकी ओर संकेत करते हुए फरमाया -“इनके बारे में तुम क्या सोचते हो? विनम्रतापूर्वक परदादा सा. श्री कन्हैयालालजी बोले –“जब आपने सोच लिया, विचार कर लिया, तो हमारे सोचने की तो बात ही क्या ?"
१३७०, ताराचन्द नायब का रास्ता
जौहरी बाजार, जयपुर (राज.)