Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ५५४ 'हां भगवन् ।' उस समय मेरी उम्र लगभग ४५ वर्ष की थी। . कुछ वर्षों पश्चात् गुरुदेव दक्षिण से जलगांव, इन्दौर होकर जयपुर की ओर बढ़े। तब मैंने सोचा कि भगवन्त का चातुर्मास पाली करवाना है। लगातार हमारी पाली की विनति चलती रही, परन्तु गुरुदेव ने मौन के अलावा किसी प्रकार का आश्वासन नहीं दिया। विनति का हमारा क्रम बराबर चलता रहा। कोसाणा के चातुर्मास के पश्चात् मेरी प्रबल भावना हुई कि अगला चातुर्मास पाली में येनकेन प्रकारेण करवाना है। आचार्य श्री के पीपाड़ पधारने पर कभी हमारा संघ, कभी युवक संघ, बालिका संघ, बालक संघ और कभी श्राविका संघ थोड़े-थोड़े अन्तराल से पीपाड़ जाते रहे। वहाँ पर सम्पन्न होली चातुर्मास पर हमें केवल इतनी ही सफलता मिली कि हमें क्षेत्र खाली नहीं रहने का आश्वासन मिल गया। पीपाड़ से विहार हुआ। मैं प्रतिदिन विहार में जाता और निवेदन करता | 'भगवन आप क्षेत्र पर कृपा रखें।' (बोल बोल म्हारा प्यारा गुरुवर, काई थाणी मरजी रे, म्हां सू मुण्डे बोल)।
गुरुदेव महामन्दिर पधारे। हमें संकेत मिला कि गुरुदेव नव वर्ष की वेला में चैत्र शुक्ला एकम को चातुर्मास खोल सकते हैं। पाली संघ के प्रतिनिधि महामंदिर गये। वहाँ पर दोपहर को गुरुदेव ने हमारी विनति स्वीकार करते हुए कहा कि यदि चल सकने की स्थिति रही तो पाली में चातुर्मास हो सकेगा। आचार्य भगवन्त की चलने जैसी स्थिति थी ही नहीं । लगभग ८०-८५ दिन आप जोधपुर शहर एवं उसके उपनगरों में धर्म प्रभावना करते रहे। ____ यहाँ पर विहार १-२ किमी ही हो पाता था। गुरुदेव को कमजोरी भी महसूस होती थी। सभी यह सोचने लग गए कि अब चातुर्मास जोधपुर में ही होना है। मेरे साथी भी इस विचार से सहमत होने लगे थे। परन्तु मैंने हर बार यही कहा कि आचार्य भगवन्त ने जिस दृढ़ता के साथ चातुर्मास खोला है, उसके अनुसार अगला चातुर्मास पाली में ही होगा। ____ यहाँ एक चमत्कार घटित हुआ। आचार्य भगवन्त का प्रथम विहार जोधपुर की मधुवन कालोनी से कुड़ी गाँव की ओर हुआ। विहार के समय पाली और जोधपुर के अनेक श्रावक उपस्थित थे। जोधपुर निवासी कहने लगे कि आज इतना लम्बा विहार कर कुड़ी पधारना संभव नहीं है। गुरुदेव रास्ते में विश्राम कर पधारेंगे। मैंने कहा - "आज आप आचार्य भगवन्त का चमत्कार और पाली की पुण्यशालिता का अहसास करेंगे।” जय - जयकारों की आवाज गूंज उठी। विहार कर आचार्यप्रवर कुड़ी पधार गए। किसी प्रकार की थकावट नहीं लग रही थी। उनके चेहरे की तेजस्विता से ऐसा आभास हो रहा था जैसे आचार्य भगवन्त स्वस्थ हो गए हैं। दूसरे दिन का विहार मोगड़ा की तरफ होना था। पाली संघ और जोधपुर संघ साथ में था। गर्मी का मौसम था और विहार लम्बा था। परन्तु प्रात:काल आकाश में मेघ प्रकट हुए, रिमझिम वर्षा हुई और मौसम सुहावना हो गया। आचार्य श्री ने विहार करते समय फरमाया कि आज तो कश्मीर जैसा मौसम है। इस तरह गांवों में विचरण करते हुए आचार्य श्री रोहट पधारे, जहां धर्मध्यान का अनुपम ठाट लगा। वहाँ से विहार करते हुए दो जगह रात्रि विश्राम कर आचार्य श्री केरला स्टेशन पधारे । प्रमुख संत श्री हीरामुनि जी (वर्तमान आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा.) ने फरमाया, “सिंघवी साहब, आज क्या लक्ष्य है? पाली की गुमटी तो बहुत दूर है। इतना विहार सम्भव नहीं लगता।” मैंने कहा, “भगवन् ! रास्ते में खारड़ो की ढाणी आती है, सड़क से एक किलोमीटर अन्दर चलना होगा। वहाँ पर स्कूल है। ठहरने में परेशानी नहीं आयेगी।" किन्तु जब आचार्य भगवन्त खारड़ों की ढाणी की ओर मुड़ने वाले रास्ते के निकट पहुंचे तो उनसे निवेदन किया गया, “भगवन् ! इधर पधारें। पाली की गुमटी तो बहुत दूर है" तो गुरुदेव ने कहा , “सीधे ही चलते हैं" और गुरुदेव बिना किसी अड़चन के पाली की गुमटी पधार गये । पाली संघ के हर्ष का पारावार नहीं रहा। गुरुदेव अपार