Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ५६४
अब कतिपय वे संस्मरण प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनका मुझे स्वयं अनुभव हुआ -
(१) पूज्य आचार्य श्री का सैलाना चातुर्मास हुआ। उस समय पूज्य पिता श्रीलखमी चन्द जी कमर की हड्डी क्रेक हो जाने के कारण पूज्य आचार्य भगवन्त के दर्शनार्थ सैलाना जाने में असमर्थ थे। उन्होंने मिठाई एवं अन्य १-२ वस्तुओं का त्याग कर दिया था कि जब तक पूज्य आचार्य भगवन्त के दर्शन नहीं कर लूँ तब तक इनका सेवन नहीं करुंगा। यह बात पूज्य आचार्य भगवन्त को सैलाना में मालूम हुई तब चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् यद्यपि पूज्य आचार्य भगवन्त को सैलाना से वापस राजस्थान की ओर जाना आवश्यक था, किन्तु करुणा के सागर पूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य पिता श्री की भक्ति के कारण उज्जैन पधारे। पूज्य पिता श्री ने उनके दर्शन कर अपने को धन्य माना।
(२) यद्यपि मेरा पूरा परिवार धार्मिक था और है , किन्तु मैं उस समय धर्म के रास्ते पर बिल्कुल नहीं था। और तो ठीक है, किन्तु २-४ माह में भी नवकार मंत्र का स्मरण नहीं करता था। इतनी मेरी दयनीय स्थिति थी। साथ ही आर्थिक स्थिति भी बहुत ही दयनीय थी। पूज्य आचार्य भगवन्त उज्जैन पधारे, हमारा घर रत्नवंश का भक्त होने के कारण मैं पूज्य आचार्य भगवन्त के दर्शनों का एवं प्रवचन आदि का लाभ लेने के लिये जाने लगा।
१२ दिन पश्चात् पूज्य आचार्य भगवन्त स्थानक से विहार कर फ्रीगंज पधारे। मैं भी दोपहर में पूज्य आचार्य भगवन्त के साथ साथ फ्रीगंज गया। वहाँ पर मुझसे आचार्य भगवन्त ने पूछा कि धार्मिक कार्यक्रम क्या करते हो? उस दिन प्रथम बार पूज्य आचार्य भगवन्त से बात करने का स्वर्णिम अवसर मिला। उसके पूर्व पूज्य आचार्य भगवन्त से बात करने के विचार ही मेरे मन में नहीं आये।
मैंने उत्तर दिया कोई भी धार्मिक कार्यक्रम नहीं करता हूँ। इस पर उन्होंने मुझे प्रेरणा दी कि आपको नवकार मन्त्र की एक माला नियमित गिनना है और मैंने सहर्ष नवकार मन्त्र की माला नियमित गिनने का संकल्प पूज्य आचार्य भगवन्त के मुखारविन्द से लिया। तबसे मैंने जीवन में प्रथम बार नवकार मन्त्र की माला गिनना प्रारम्भ किया, जिससे आत्मा में अद्भुत शान्ति एवं सुख की लहर प्राप्त हुई ।
उसके पश्चात् पूज्य आचार्य भगवन्त के अहमदाबाद चातुर्मास में मैं दर्शनों के लिये गया। वहाँ पर फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि धार्मिक क्रिया करते हो? तब मैंने निवेदन किया कि पूज्य गुरुदेव आपकी प्रेरणा के अनुसार नवकार मंत्र की माला गिन रहा हूँ। तब उन्होंने कहा अरे भोलिया, अभी तक तूने सामायिक शुरू नहीं की। आज ज्ञान पंचमी का दिन है और आज से आपको नित्य सामायिक करना है। मैंने निवेदन किया कि सामायिक के कोई भी उपकरण मेरे पास नहीं हैं। अत: कैसे प्रारम्भ करूँ।
उपस्थित श्रावक द्वारा सामायिक के उपकरण की व्यवस्था करने पर मुझे सामायिक का नियम करवाया और नित्य सामायिक करने की प्रेरणा देते हुये पच्चक्खाण करवाये। तबसे आत्मा में शान्ति एवं सुख की वृद्धि के साथ
आर्थिक स्थिति भी उत्तरोत्तर सुधरती गई। यह तो प्रथम उपकार मेरे जैसे पापी के ऊपर पूज्य आचार्य भगवन्त का | हुआ।
___ घर में पूरा वातावरण धार्मिक होता चला गया और पूज्य आचार्य भगवन्त एवं सन्त-सती मण्डल पर दृढ श्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती गई। ___(३) इन्दौर चातुर्मास के १०-१२ वर्ष पूर्व मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाई चोरड़िया ने रात्रि ४-५ बजे स्वप्न देखा कि पूज्य आचार्य भगवन्त एवं सन्त घर पर पधारे और हमने पूज्य आचार्य भगवन्त को पातरे में चावल बहराये और आचार्य भगवन्त मुस्कराते हुए चावल लेकर वापस पधार गये। धर्मपत्नी ने प्रात: मुझे स्वप्न का वृत्तान्त सुनाया,