Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४६०
प्रकार उसके हाथ में लिया गया समाज-सुधार, राष्ट्र-सुधार अथवा विश्व-सुधार का कार्य आगे नहीं बढ़ सकेगा। इसीलिए भगवान महावीर ने फरमाया है कि सुधार की दिशा में सबसे पहले स्वयं को सुधारो और तत्पश्चात् दूसरों के सुधार की बात करो। यदि पापी हमारे सद्प्रयलों से नहीं सुधर पाता तो भी उसके ऊपर क्रोध न कर माध्यस्थ भाव की शरण लेनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति दया का पात्र है, क्रोध का नहीं। किसी पाप कर्म के कारण किसी भी व्यक्ति को मारने की अपेक्षा उसे समझाने या सुधारने का प्रयत्न करना अच्छा है और यदि प्रयास के बाद भी वह नहीं सुधरे तो तटस्थ भाव को ग्रहण कर लेना चाहिए। क्योंकि समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम, मैत्रीभाव एवं दया ही मानवता का मूलोद्देश्य है। कोई व्यक्ति धर्म के लिए समाजसेवा या प्रचार में अपना समस्त जीवन लगा दे, फिर भी समाज यदि उसके प्रति आदर न करे तो ऐसे व्यक्ति की सत्प्रवृत्ति आगे कैसे बढ़ेगी? कोई सोना, चांदी, भूमि, भवन, पशुधन आदि परिग्रह की अपेक्षा यदि गुणों की ओर अधिक ध्यान लगावे तो ऐसे सद्गुणियों का समाज में आदर होना चाहिए। कोई शीलव्रत ग्रहण करे और उसकी खुशियाँ मनाए तो वह ठीक है पर बाल-बच्चे पैदा किये, विषयों का सेवन |
किया, इसकी खुशियाँ मनाएँ तो वह धन का उन्माद ही कहा जाएगा। • समाज में जन्म, मरण एवं मृत्यु पर अनेक गलत रूढ़ियाँ चल रही हैं, चाहे वे हानिकारक ही हों, किन्तु साधारण
मनुष्य इस पर विचार नहीं करते। महिलाएँ तो गलत रीति-रिवाजों में और भी अधिक डूबी रहती हैं। जलवा पूजना, चाक-पूजन, जात देना, ताबीज बांधना, देव और पितर की पूजा करना, मरे हुए के पीछे महीनों बैठक रखना और रोना- ये सब कुरीतियाँ समाज में दृढ़ता से घर बनाए हुए हैं। इनके निवारण हेतु दृढ संकल्प की
जरूरत है। • समुद्र में विशाल सम्पदा है, वह रत्न राशि को पेट में दाबे रहता है और सीपी घोंघों आदि को बाहर फेंकता है।
इस पर किसी कवि ने उसको अविवेकी बतलाया है। वास्तव में यह ललकार उस समाज को है, जो गुणियों को भीतर दबाकर रखे और वाचालों को बाहर लावे। जो समाज गुणियों का आदर और वात्सल्य करना नहीं
जानता, वह प्रशंसनीय नहीं कहलाता। • आवेगपूर्ण बातों से कई बार मारपीट और समाज में विष तक प्रसारित हो जाता है। अतः व्रती को व्यर्थ की
पटेलगिरि या गप्पबाजी में नहीं पड़ना चाहिए। • पिछड़े एवं असंस्कृत जनों के सुधार के लिए कोरा कानून बना देने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। असली
और मूलभूत बात है उनकी मनोभावनाओं में परिवर्तन कर देना। मनोभावना जब एक बार बदल जाएगी तो जीवन में आमूलचूल परिवर्तन स्वतः आ जाएगा फिर उनकी सन्तति-परम्परा भी सुधरती चली जाएगी। अगर आप अपने किसी एक पड़ौसी की भावना में परिवर्तन ला देते हैं और उसके जीवन को पवित्रता की ओर प्रेरित करते हैं तो समझ लीजिए कि आपने समाज के एक अंग को सुधार दिया है। प्रत्येक व्यक्ति यदि इसी
प्रकार सुधार के कार्य में लग जाए तो समाज का कायापलट होते देर न लगे। • जीवन के प्रत्येक कार्य में समाज का प्रत्येक सदस्य यदि इस बात का ध्यान रखे कि उसका कोई भी कार्य दूसरे
के लिये किसी प्रकार की कठिनाई पैदा करने वाला एवं भारस्वरूप न हो, तो समाज में परिग्रह-प्रदर्शन तथा