Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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| द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
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आसन पर बैठने वाले भाई को ? एक भाई सफेद रंग की सादी सूत से बनी अथवा चन्दन की लकड़ी की माला लेकर बैठा है और दूसरा भाई चांदी के मणियों की माला लेकर बैठा है। सेठ साहब अपनी उस चांदी की माला को ऊपर उठाकर जोर-जोर से नमस्कार मंत्र जप रहे हैं। इस तरह से सेठ साहब सामायिक कर रहे हैं या सब लोगों के सामने अपनी साहिबी का प्रदर्शन कर रहे हैं ? अथवा अपने सब भाइयों को बेईमान समझने की | भावना प्रदर्शित कर रहे हैं या अपने बड़प्पन का भोंडा प्रदर्शन कर रहे हैं ? सामायिक में बैठकर भी आपका यह खयाल हो गया कि मेरी मोटाई, सेठाई लोगों को कैसे बताऊँ तो फिर आप कहाँ भगवान के चरणों में पहुँचेगें? यदि सामायिक के स्वरूप के संबंध में आप उपासकदशांग का थोड़ा सा चिन्तन-मनन करेंगे तो आपको भलीभांति ज्ञात हो जायेगा कि पूर्व काल में सामायिक की साधना करते समय पूर्णत: सादगी और निष्परिग्रहत्व को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। 'उपासकदशांग' में स्पष्ट उल्लेख है कि कुंडकोलिक श्रावक ने अशोक वाटिका में सामायिक के समय मूंदडी भी उतार कर अलग रख दी। चद्दर और मूंदडी उतार कर उसने सामायिक में ध्यान लगाया। वस्तुत: सामायिक में सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात के आभूषणों का त्याग होता है। परिग्रह का त्याग होता है। मुनिवृत्ति का रूप होता है। ऐसी सामायिक ही साधक को अभीष्ट होनी चाहिए। विषम भावों से समभावों में आना सामायिक का लक्ष्य है। जिस प्रकार कुश्ती, दंगल से शारीरिक बल बढ़ता है उसी प्रकार सामायिक से मानसिक बल में वृद्धि होती है। ज्ञान के साथ आचरण और आचरण के साथ ज्ञान होना आवश्यक है। सामायिक मुख्यत: आचार-प्रधान साधना है। पर यह आचार क्रियाकाण्ड बनकर न रह जाये, अत: इसके साथ ज्ञान अर्थात् स्वाध्याय का जुड़ना आवश्यक है। आप इस बात का ध्यान करें कि आपकी सामायिक दस्तूर की सामायिक न होकर साधना की सामायिक हो। सामायिक को तेजस्वी बनाने के लिये उसमें स्वाध्याय और ध्यान-साधना की आवश्यकता है और स्वाध्याय को जीवनस्पर्शी बनाने के लिये सामायिक का अभ्यास आवश्यक है। सामायिक करते समय तुम्हारा मन बाहर चला जाय तो यह समझो कि जिस चीज पर मन गया है वह भौतिक
चीज मेरी नहीं है, उसमें ममता मत रखो। • मन के बाहर जाने का सबसे बड़ा कारण राग है इसलिये उसको कम करो। राग कम करने का उपाय यह है कि
बाहरी पदार्थों के साथ जो तुम्हारा अपनापन है, लगाव है, उसको अपना समझना छोड़ दो। यह समझ लो कि जो मेरा है वह मेरे पास है। जो दुनिया में है, बाहर है, वह मेरा नहीं है। दूसरा बाहरी उपाय यह बताया कि सुकुमारता-कोमलता का परित्याग करो, शरीर की आतापना बढ़ाओ ताकि दुःख सहन करने का अभ्यास कर सको। अभ्यास रहेगा तो आपत्तियों का तथा कठिनाइयों का कभी मुकाबला
करना पड़े तो मन में खेद नहीं होगा। • 'कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं ।' प्रभु ने कहा कि ए साधक ! यदि मन को बाहर जाने से रोकना चाहता है तो
अपनी कामना त्याग कर, कामना को वश में कर। जितनी-जितनी इच्छाएँ बढ़ेंगी उतना ही ज्यादा दुःख भोगना पड़ेगा। इच्छाएँ बढ़ाई, तो मन साधना से बाहर जायेगा। अत: प्रभु ने कहा कि दुःख दूर करने की कुञ्जी है - कामना दूर करना। सामायिक जैसी साधना को निर्मल और निर्दोष बनाकर आगे बढ़ाना है तो उसके लिये प्रभु ने कहा कि विकथा |
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