Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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|चंचल अल्हड़ देहरी पर खड़े होकर भी वे प्रौढ़त्व की गम्भीरता से संयुक्त हो गये थे। वहां तो अथाह, अतल, असीम सागर-सी गहनता, गम्भीरता, विशालता ही थी। ऐसे दिव्य व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी को 'गुरु' रूप में पाकर मुझे क्यों न गर्व होगा। यह तो भाग्य की, कर्मों की विचित्रता ही रही कि मुझे उनका पूर्ण सान्निध्य नहीं मिल पाया। फिर भी पूज्य प्रवर श्री के अनन्य उपकारों को मैं भूल नहीं पाया हूँ, न ही भुला सकता हूँ।
जिन शासन के महान् ज्योतिर्धर आचार्यों की जगमगाती दिव्य परम्परा में पूज्य प्रवर आचार्य श्री का जीवन | और कृतित्व अपना एक सुयोग्य स्थान स्थापित किये हुए है और युग-युगों तक रहेगा भी।
पूज्य प्रवर आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. न केवल नाम से 'हस्ती' थे, अपितु कृतित्व में भी 'हस्ती' थे। यदि यूँ कहूँ तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'हत्थीसु एरावणमाहु' अर्थात् वे ऐरावत हस्ती के समान अतिशय पुण्यशाली महान् पुण्य प्रभावक थे। जैसे–हस्तियों में ऐरावत हस्ती सर्वश्रेष्ठ और महान् माना जाता है, वैसे ही जिनशासन की गौरवमयी परम्परा में पूज्य श्री भी श्रेष्ठता के धारक माने जाते हैं।