Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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दूसरा कोई उदाहरण नहीं
• पं. रत्न श्री घेवरचन्दजी म.सा. 'वीर पुत्र' (आचार्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. के चादर महोत्सव के समय २ जून १९९१ को व्यक्त विचार) पूज्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. ने ६० वर्षों से कुछ अधिक समय तक संघ का संचालन किया। निरतिचार आचार्य पद का इतने लम्बे समय तक पालन करने वाले सन्त का मेरी दृष्टि में दूसरा उदाहरण नहीं है और पिछले २०० वर्षों के इतिहास में ऐसा उदाहरण पढ़ने में नहीं आया। उस महापुरुष ने तेले की तपस्या सहित तेरह दिन का संथारा किया। पिछले २०० वर्षों के इतिहास में आचार्य श्री जयमल्ल जी म.सा. के तीस दिन के संथारे का उल्लेख आता है, अन्यथा इस युग में इतना लम्बा संथारा किसी आचार्य को नहीं आया, यह भी एक कीर्तिमान है।
मुझे पूज्य आचार्य श्री की सेवा का अवसर मिला है। सादड़ी सम्मेलन में सब आचार्यों ने पद का त्याग किया तब एक नाम पूज्य हस्तीमल जी म.सा. ने पूज्य श्री गणेशीलाल जी का रखा। पूज्य गणेशीलाल जी म.सा. ने कहा - “आचार्य कौन हो? जो शास्त्रों का पारगामी हो, युवक हो और विचरण-विहार करके क्षेत्रों को सम्भालने वाला हो। ऐसा कोई आचार्य हो सकता है तो वे पूज्य श्री हस्तीमलजी हो सकते हैं।"
-जिनवाणी, अगस्त १९९१ से साभार