Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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साधना के शिखर पुरुष
• महान अध्यवसायी श्री महेन्द्र मुनि जी महाराज आचार्य भगवन्त पूज्य गुरुदेव श्री हस्तीमलजी महाराज जब तक जीए , आदर्श जीवन जीया। उनका जीवन आज भी श्रद्धा से स्मरण किया जा रहा है। भगवन्त में गौतम की तरह ज्ञानगरिमा, सुधर्मा की तरह संघव्यवस्था, अनाथी की तरह वैराग्य और स्थूलिभद्र की तरह ध्यान था।
आचार्य भगवन्त ने अपना जीवन आचरण के साथ ऐसा ढाला कि हम आज भी श्रद्धा से उस महापुरुष को यह कहकर याद करते हैं कि उनके जीवन में पर्वत सी ऊँचाई थी तो सागर सी गहराई थी। उस महापुरुष में अनेकानेक गुण थे। वे प्रवचन के माध्यम से ही नहीं, मौन साधना से भी प्रेरणा देने वाले महापुरुष थे। उनकी प्रेरणा से हजारों स्वाध्यायी बने और हजारों-हजार लोगों ने अपना जीवन संवारा।
आचार्य भगवन्त जयपुर विराज रहे थे। कृष्ण पक्ष की दशमी को वे अखण्ड मौन रखते और ध्यान करते थे। ध्यान-साधना में स्व-स्वभाव में आने का उनका चिन्तन चलता ही रहता। एक दिन कृष्ण पक्ष की दशमी को आचार्य भगवन्त ध्यानस्थ हो अपनी साधना कर रहे थे, संयोगवश उस दिन जैन धर्म के मूर्धन्य मनीषी अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिक्षाविद् डॉ. दौलतसिंह जी कोठारी आचार्य भगवन्त के दर्शन-वन्दन और पर्युपासना के लक्ष्य से वहाँ पहुंचे। आचार्य भगवन्त के श्रद्धाशील श्रावक श्री नथमल जी हीरावत नीचे उतर रहे थे और डॉ. कोठारी साहब लाल भवन की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। हीरावत साहब ने कोठारी साहब से कहा - आचार्य भगवन्त तो आज मौन साधना में हैं, आपकी बात नहीं हो सकेगी। कोठारी साहब बोले- कोई बात नहीं, मुझे दर्शन लाभ तो होगा।'
आचार्य भगवन्त ध्यान-साधना में विराजमान थे। डाक्टर साहब वन्दन नमन कर सामने बैठ गये। वे करीब घण्टे भर वहां बैठे रहे और उसके बाद नीचे उतरे। संयोग से हीरावत साहब उन्हें फिर मिल गये। कोठारी साहब बोले - मैंने आज जो पाया है वह वर्षों में कभी नहीं पा सका। आचार्य भगवन्त का जीवन बोलता है। आचार्य भगवन्त के उपदेश प्रभाव जमाने हेतु नहीं, स्वभाव में लाने वाले होते थे।
आचार्य भगवन्त के जीवन में करुणा थी वहीं वज्र सी कठोरता भी थी। महापुरुषों में ऐसे विरोधी गुण भी होते हैं। दीन-दुःखी और असहाय को देख वे द्रवित हुए बिना नहीं रहते और जहां कहीं आचरण में ढिलाई देखते उस समय उनमें वज्रसी कठोरता देखी जाती। उस महापुरुष ने ७१ वर्ष तक निरतिचार संयम का पालन किया और अप्रमत्त जीवन जीया। उनका जीवन लड़ की तरह सब ओर से मधुर था। लड़ को आप जिधर से खाएँ उसमें मिठास होती है। उसी प्रकार आचार्य भगवन्त का जीवन मधुरिमा से युक्त था। ___आचार्य भगवन्त ने रोग-ग्रस्त होने पर दोष लगाना तो दूर कभी मन को कमजोर तक नहीं होने दिया। भगवन्त के मोतियाबिन्द का आपरेशन होना था। डॉक्टर आपरेशन के पूर्व इन्जेक्शन लगाने के लिए कह रहे थे, परन्तु भगवन्त ने दृढतापूर्वक कहा -इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं है। भगवन्त ने बिना इंजेक्शन आपरेशन करवाया
और आपरेशन के पूर्व संतों को सावधान किया कि आप ध्यान रखें, आपरेशन के दौरान कहीं कच्चे पानी का उपयोग न हो जाये।