Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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अध्यात्म- आलोक पूज्य गुरुदेव
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मधुरव्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा.
संसारस्थ आत्माएँ अनादि अनन्त काल से कर्म आवरण से संयुक्त होकर जन्म, जरा और मरण के चक्रव्यूह में चक्कर लगा रही हैं। विरली आत्माएँ ही इस चक्रव्यूह का भेदन कर आत्म-स्वरूप का भानकर इसके प्रकटीकरण की ओर प्रयासरत हो पाती हैं। आत्मा के शुद्ध शाश्वत स्वरूप के प्रकटीकरण की ओर उन्मुख महापुरुष का जीवन स्व पर के लिये कल्याणकारी बन जाता है। ऐसे ही महापुरुष थे जीवन निर्माता संयमधनप्रदाता पूज्यपाद गुरुदेव परम पूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. ।
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मुझे उन श्री चरणों में समर्पित होने व उनका स्नेहिल सान्निध्य पाने का सौभाग्य मिला है, यह अनन्त जन्मों में संचित पुण्य का प्रसाद है । माँ रूपा के लाल, केवल के बाल, बोहरा कुल शृंगार, शोभा गुरु के शिष्य, रत्न वंश के | देदीप्यमान रत्न, जिनशासनाकाश के जाज्वल्यमान नक्षत्र, लक्षाधिक भक्तों के आराध्य भगवन्त, संयमी साधकों के लिये भी आदर्श, सामायिक के पर्याय, स्वाध्याय गंगा के भगीरथ, अष्टप्रवचनमाता द्वारा संरक्षित महाव्रतों द्वारा | साधना के उच्च शिखर पर सुशोभित, शील सौरभ से सुरभित, मौनव्रत - अनुरागी, जप-तप व संयम के आराधक, उन | महामना के जीवन उपवन में न जाने कितने गुण पुष्प खिले हुए थे, जिनकी सुरम्य छटा व दिव्य महक से समूचा जैन | जगत आह्लादित था ।
जिनेन्द्रप्रणीत निर्ग्रन्थ प्रवचन में जिनकी आस्था थी तो तदनुरूप संयम - पालन में जिनकी निष्ठा थी और ब्रह्मचर्य में जिनकी प्रतिष्ठा थी। जो भी श्री चरणों में उपस्थित हुआ, उसे अपना बना लेने में जिनकी सिद्धि थी, तो | सामायिक स्वाध्याय में जिनकी प्रसिद्धि थी । मन, वचन व कर्म में जिनके एकरूपता थी तो प्रेरणाओं में जिनके | विविधता थी । संघशासन उनका काम था तो आत्मानुशासन में उनका नाम था । उनकी चर्या में आगम जीवन्त थे | तो व्यवहार में शास्त्र मर्यादा का बोध था। जिनके चिन्तन में हर किसी के कल्याण की कामना थी, वाणी में सूत्र की वाचना थी तो क्रिया में शास्त्र की पालना थी। जिनके कदम जिधर भी बढ गये, हजारों कदमों के लिए वह राह बन गई, अल्प संभाषण में जो कुछ निकला, वही प्रेरणा बन गई।
जिधर भी उनके चरण पड़े, वह धरा पावन हो गई, जिस पर भी उनकी नजर पड़ी, वह धन्य हो गया, जिसे भी उन्होंने पुकारा, वह सदा के लिये उनका हो गया।
ज्ञानसूर्य हस्ती के सूत्र रूप में फरमाये गये प्रवचन अनेकों के लिये दिशा बोधक बन गये, प्रकाशपुञ्ज उस | दिव्य योगी की महनीय स्नेहिल दृष्टि से भक्त कभी तृप्त ही नहीं हो पाते। अमृतकलश सदा प्रेरणा का पावन अमृत बांटता रहा, अध्यात्म आलोक अपने मंगलमय मार्गदर्शन व प्रखर साधनादीप्त जीवन से जिनशासन की जीवनपर्यन्त प्रभावना करता रहा। जागरण का वह क्रान्तिदूत इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित है। | इतिहासवेत्ता अपने जीवन के अनेक कीर्तिमानों से इतिहास को समृद्ध बना गये । वे युग से नहीं, वरन् युग जिनसे प्रतिष्ठित है, जिनसे जुड़कर हर कोई व्यक्ति, क्षेत्र व समय महिमामंडित हो गया। क्या संयम, सरलता, निस्पृहताका | वह विशिष्ट युगशास्ता युगनिर्माता ज्ञानसूर्य कभी अस्त हो सकता है ? क्या वह प्रेरणा कभी मौन हो सकती है ? क्या लक्षाधिक भक्तों के हृदय में संस्थापित वह प्रज्ञापुरुष कभी नि:शेष हो सकता है ? एक ही प्रत्युत्तर होगा,