Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ४७६
आपको या आपके बच्चों को पढ़ने का समय नहीं मिलता, समय मिलता है, लेकिन कमी इस बात की है कि समय का सदुपयोग नहीं करते। आदमी को खाने के लिए समय मिलता है, कमाई के लिए अथवा आराम के लिए समय मिलता है, व्यवहार के लिए समय मिलता है, तो फिर स्वाध्याय के लिए समय क्यों नहीं मिलता? • जब तक श्रद्धा का युग था, भक्ति का युग था, विश्वास का युग था, तब तक तो आप नहीं पढ़ते तो भी कोई
हर्ज नहीं था। लेकिन अब श्रद्धा का युग चला गया, भक्ति का युग नहीं रहा। अब बुद्धिवाद का युग, विज्ञान का युग आ गया। आपके पिताजी, दादाजी, माताजी में धर्म के प्रति कितनी श्रद्धा थी और आज आप में कितनी श्रद्धा है? उनको देखकर आपके मन में भी आता होगा कि माताजी बड़ी धर्मात्मा हैं, रोज सामायिक करती हैं, धर्मध्यान करती हैं, उनकी तरह हमें भी करना चाहिए। इस चीज़ को आपका दिमाग क्या मंजूर कर लेता है? आज के दिमाग को ज्ञान चाहिए। यह बिना स्वाध्याय के नहीं मिल सकता। इसलिए यदि अपनी भावी पीढ़ी को और समाज को धर्म के रास्ते पर लाना है, तेजस्वी बनाना है तो स्वाध्याय का घर-घर में व्यापक प्रचार होना चाहिए। शृंगाररस से सम्बन्धित उपन्यास, जासूसी-उपन्यास, हास्यरस के उपन्यास नहीं पढ़ने चाहिए। इस तरह के निकम्मे उपन्यास पढ़ने से दिमाग पर उलटा असर पड़ता है। समय और शक्ति का भी अपव्यय होता है। उपन्यास पढ़कर किसी में श्रद्धा भाव आया हो या विनय भाव आया हो, ऐसा नमूना देखने को नहीं मिलता। उपन्यास के बारे में आप विचार करेंगे तो इसमें नफा कम है और टोटा ज्यादा है, यह मानकर चलना चाहिए। इसके बजाय यदि आप आध्यात्मिक साहित्य पढ़ेंगे, धार्मिक ग्रन्थ पढ़ेंगे, सद्ग्रन्थ पढ़ेंगे, अथवा महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो उनसे केवल मुनाफा ही मुनाफा होगा और घाटा कुछ नहीं होगा। • जर्मन विद्वान और अमेरिकन विद्वान जैन धर्म के ग्रन्थ पढ़ते हैं। नहीं समझ में आवे तो भी कोशिश करते हैं। वे
जैन धर्म के आध्यात्मिक ग्रन्थों का अनुवाद करवा कर भी उनको पढ़ने में अपना समय देते हैं। इसलिए कि वे उनसे ज्ञान प्राप्त करने की उत्कण्ठा रखते हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि आप घर की चीज़ की कीमत नहीं करते हैं, उसका मूल्य नहीं समझते हैं। बाहर के विद्वान तो लंदन में ऋषभ लाइब्रेरी खोल रहे हैं, क्योंकि वे जैन धर्म की कद्र करते हैं। हमारे पुराने ग्रन्थों का संग्रह कर रहे हैं। वे लोग यह समझते हैं कि भारत में जैन साहित्य और बौद्ध साहित्य का अमूल्य खजाना है, जो उनके वहाँ नहीं मिलता। उनके वहाँ ज्ञान का उदय हुआ है, जबकि भारत में ज्ञान का उदय और विकास दोनों हुए हैं। इस तरह से वे लोग हमारे साहित्य की उपयोगिता समझते हैं। लेकिन हम अपने घर में निधि होते हुए भी यदि उसकी उपयोगिता नहीं समझ पायेंगे तो ध्यान रखने की बात है कि विदेशियों के सम्मुख अपने को गर्दन नीची करनी पड़ेगी। मान लीजिए कि आप में से कोई व्यवसाय के कारण विलायत चले गये या घूमने के लिए अमेरिका अथवा जर्मनी चले गये। आप विदेशी से मिले, उनसे हाथ मिलाया तथा किसी तरह से उनको मालूम हो गया कि आप जैन हैं और वे आप से पूछ बैठे कि जैन धर्म में क्या खूबी है? साधना क्या है? तत्त्व क्या है? इन सबके बारे में वे आपसे १५ मिनट के लिए जानकारी चाहेंगे तो क्या आप उनको जानकारी दे सकेंगे? यदि आप स्वयं जानकारी नहीं रखते तो आपको गर्दन नीची करनी पड़ेगी। सत्संग और स्वाध्याय जीवन को ऊँचा उठाते हैं। आप जीवन के परम तत्त्व को समझ कर ज्ञान और स्वाध्याय का महत्त्व घर-घर में, मोहल्ले-मोहल्ले में, गाँव-गाँव में फैलाकर जन-मन को जागृत करेंगे तो अज्ञान का अंधकार