Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३८९ रहा।" गुरु महाराज ! ऐसा कोई तप बताओ, जिससे लड़का हो जाय। अगर लड़का हो जावे तो मैं एक अठाई कर लूंगी। यह तो हुई बाई की बात । भाई साहब किसी मामले में किसी मुकदमे मे फंसे हैं। मुकदमे में वर्ष गुजर गये। अब चाहते हैं, यह जल्दी निपट जावे उनके पक्ष में । इसके लिये वे तेला कर लेते हैं। अभी कुछ वर्ष पहले की बात है। एक ऐसा ही भक्त-भाई था। उसका कोर्ट में कई बरसों से कोई मामला चल रहा था। उसने तेला किया। अब मन में उसके क्या था, वही जान सकता है। हमें तो पता नहीं। पर बाद में तेले का पारणा करके मेरे पास आया। बोलने लगा-“महाराज ! यह तो इस तेले का प्रभाव है कि मेरे मुकदमा जो बरसों से चल रहा था,आज मेरे हक में हो गया और तुरत-फुरत हो गया। मुझे तो पाँच मिनिट भी खड़ा नहीं रहना पड़ा वहाँ । जाते ही काम पूर्ण हो गया महाराज ! महाराज, आपको भी धन्यवाद है। तपस्या से मेरी तो सिद्धि हो गई। मेरा बरसों का अटका हुआ काम सिद्ध हो गया। लेकिन प्रभु महावीर ने कहा कि यह तप नहीं है। इस तरह का तप करना निषिद्ध है। यह तो ठीक है कि उस एक भाई का संयोग से अंतराय का टूटना था, कर्म अवशेष नहीं थे। इसलिये उसका काम हो गया। पर अगर तेला करने पर भी उसका काम नहीं बनता तो? तेले की तपस्या पर से उसकी श्रद्धा घटती कि बढ़ जाती? तेले की तपस्या की कद्र घटती कि बढ़ती? वैसे तपस्या के सामने ऐसे-वैसे लाभ मिलने असम्भव तो कतई नहीं हैं। प्रतिष्ठा के अर्थी को लौकिक प्रतिष्ठा मिल सकती है, अर्थ के अर्थी को अर्थ लाभ भी हो सकता है, स्वास्थ्य के अर्थी को स्वास्थ्य लाभ भी हो सकता है, इसमें कोई शंका नहीं। ये सब कुछ निश्चय ही मिलेंगे। पर अगर तुम इस तप को, इन सांसारिक पौद्गलिक जड़ पदार्थों की प्राप्ति हेतु दाँव पर लगा दोगे और कल को जरा कहीं आपके तप में कमी रही या अन्य कोई कारण हो गया और आपको उसमें सफलता नहीं मिली तो? फिर उस तप पर से आपकी आस्था हट जाएगी। कह दोगे,महाराज मैंने तो समझा था कि ऐसा करने से ऐसा हो जाएगा, पर कुछ भी नहीं हुआ। अतः प्रभु ने स्पष्टतः इस तरह की कामना को लेकर | संकल्पपूर्वक तप करने के लिये निषेध कर दिया। प्रभु ने कहा है कि ए मानव ! तप का महान् लाभ है। यह अनन्त सुख देने वाला है। ये भौतिक सांसारिक जड़ सुख इसके सामने कुछ भी नहीं हैं। इसलिये अपने उस तप के इतने महान् लाभ को बाजी पर मत लगाओ। दांव पर मत लगाओ। नीलामी पर मत चढ़ाओ। आप जानते हैं कि जिस वस्तु को नीलामी पर लगाया जाता है उस वस्तु के भाव, उसकी कीमत कम हो जाती है। कभी आपको पैसे की आवश्यकता पड़े, तब आप दुकान या किसी मकान को नीलामी पर चढ़ाओ तो क्या उसकी वास्तविक कीमत मिलेगी? नहीं मिलेगी। यह बात आप भी जानते हैं। इसलिये भगवान् ने पहली बात कही-इस लोक के लिये, यानी इस लोक के पौद्गलिक सुखों की चाह के लिये, जो अशाश्वत हैं, तप मत करो। और अगर करते हो तो उसे धर्म-तप मत समझो। इससे कम से
कम तुम्हारी आस्था तो शुद्ध रहेगी। • चक्रवर्ती अपनी राज्य सत्ता की साधना के लिये समय-समय पर तेरह तेले करते हैं। लेकिन तेरह तेले करते हुए
भी वे तपस्वियों में, व्रतधारी श्रावकों में, सकाम निर्जरा करने वालों में स्थान नहीं पाते हैं। तेले के १३-१३ बार तप करने के उपरान्त भी चक्रवर्ती को अविरत-सम्यग्दृष्टि ही माना गया है, विरत नहीं माना गया है। कुछ समय पहले की बात है। हम एक जगह ठहरे हुए थे। वहाँ किसी बाई ने मासखमण किया। पारणे के दिन |