Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
बाई के मकान की छत पर पीले-पीले रंग की बूँदे पड़ीं। फिर तो क्या पूछिये आप । परिवार वालों ने और गाँव वालों तक ने मिलकर कहना शुरु किया कि अजी साहब ! इसकी तो तपस्या के पारणे में केसर की बरसात हो गई। लोग-बाग भागे-भागे हमारे पास भी आए। कहने लगे - " अजी महाराज ! उण रे तो घर में गरम पानी के थाल में पगलिया मंडियोड़ा है। आप पधारो, देखो ।”
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इसे देखने को सारा गाँव उमड़ पड़ा। मैंने कहा - " भाई ! जरा समझ से काम लो। अगर सचमुच देवता को चमत्कार बताना ही था तो चमत्कार बताने की और बहुत-सी बड़ी-बड़ी बाते थीं । देवता तपस्वी की तपस्या पर प्रसन्न हुआ है और उसे चमत्कार ही बताना चाहता है तो क्या उसे ये छोटे-छोटे केसर के छोटे ही मिले ? की भंवरे या पतंगे बीट करे, ऐसी छोटी-छोटी टपकियाँ ही मिलीं, जो उसने वहाँ डाल दीं। इसके बजाय उसने मुट्ठी भर-भर कर केसर की भरपूर बरसात ही क्यों नहीं कर दी। केसर की ही बरसात करनी थी तो सूखी केसर की मुट्ठी भर-भर कर करता। अगर उसको सूखी न मिली तो गीली की ही कर देता ।
• तपस्वी को, आप को और हमको इतना सोचना है कि चमत्कारों के चक्कर में पड़कर तपस्या के फल को हमें लुटाना नहीं है, तपस्या की हंसी नहीं करानी है।
• तपस्या की अतुल शक्ति है, अचिन्त्य शक्ति है । वह मानव के मन को बदल सकती है । पर तपस्या के पीछे मन में शान्ति हो, यह आवश्यक है।
■ दहेज-प्रथा
• दयालु जैन कुल में जन्म ग्रहण करने वाले भाई-बहन डोरे और बींटी के लिये, टीके और दहेज के लिये बोलते और आग्रह करते हुए शर्माते नहीं । इस दहेज प्रथा के कारण ही अनेक घरों में पच्चीस-पच्चीस वर्ष की कुंआरी कन्याएँ मिलेंगी। आप स्वयं ही सोचिए कि यह आपकी कैसी दया है ? हम कीड़े-मकौड़ों की तो दया पालने की बात करें और दूसरी ओर मनुष्य जैसे पंचेन्द्रिय प्राणी के प्राणों के साथ इस तरह की खिलवाड़ करें । यह कैसा अचम्भा है ? एक-एक शादी में लाखों लगाने वाले लोग, जिनके पास इस प्रकार की विपुल धन राशि है, अपने बच्चों की कीमत लगाकर कहें कि मेरे बच्चे का उसी घर में सम्बन्ध हो सकेगा, जो मेरे बच्चे की धन-राशि से कद्र करेगा अथवा उसे धन-राशि से तोलेगा, तो यह मानवीय दृष्टिकोण से कहाँ तक उचित है ?
• हमारे नवयुवक भाई सुधार की बड़ी बातें करते हैं । इस तरह की बातें करने वाले तो क्या नवयुवक और क्या अन्य बहुत मिलेंगे, पर इन बातों पर अमल करने वाले कितने हैं ? अधिकांश नवयुवक इन दहेज, टीके आदि की कुप्रथाओं को नष्ट करने का दृढ़ संकल्प कर लें तो सफलता असंभव नहीं ।
• बाहर की हिंसा को रोकने के लिये भी आवाज उठाना नितान्त आवश्यक है। इसके लिये भी कार्य करना और आवाज उठाना चाहिये। अधिकारी लोग जिन्होंने समाज के नेतृत्व को संभाल रखा है, वे लोग अपने घर से उसका शुभारंभ करें। वे प्रतिज्ञा कर लें कि वे अपने बच्चे-बच्चियों के लिये बींटी, डोरा या दहेज आदि कुछ भी न तो लेंगे और न देंगे ही। इसके लिये बड़ों को कमर कसकर आगे आना होगा ।
• दहेज समाज के लिए कलंक है । सुयोग्य एवं संस्कारित कन्याओं को धनाभाव में सुयोग्य वर नहीं मिल रहे हैं। धन यदि कम मिलता है तो वधुओं को कोसा जाता है । अत्यधिक पीड़ाएँ पहुँचाने पर कई पुत्र-वधुओं की जीवनलीलाएँ समाप्त होने की घटनाएँ सुनने में आती हैं, जिससे दिल दहल जाता है । अहिंसक समाज में ऐसे