Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
३९१
(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
घृणित परिणाम क्षोभजनक हैं। समाज को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। यदि समाज कुछ प्रतिज्ञाओं में आबद्ध होकर चले तो बहुत कुछ सुधार हो सकता है , जैसे१. दहेज की न कोई मांग करनी और न ही किसी से करवानी। २. दहेज का किसी भी प्रकार का कोई प्रदर्शन नहीं करना। ३. दहेज कम मिलने पर कोई आलोचना अथवा चर्चा नहीं करनी ।
दया • हम जैसे द्रव्य दया करते हैं वैसे ही भाव-दया करके किसी के जीवन को पवित्र बना सकते हैं। • आप किसी पर दया करें तो ऐसी करें कि जिससे उसका राग-रोष मिट जावे और कर्मबंधन का कारण नहीं बने,
यह भावना आवे तो उसके लिए मिशनरियों की तरह काम हाथ में लेना पड़ेगा। ज्ञानियों का कथन है कि दयादेवी के प्रसाद से ही शान्ति की प्राप्ति हो सकती है। उसी की आराधना करो । उसकी आराधना किस प्रकार होती है ? किसी को त्रास न दो, किसी को सताओ मत, अपने नौकर के प्रति भी कठोर व्यवहार मत करो। पड़ोसियों से झगड़ा न करो और उनकी सुख-सुविधा का खयाल रखो। भूखे और असहाय जीवों को अभय दो। पर कल्याण की भावना रखो। हृदय में कुत्सित विचारों का प्रवेश न होने दो। इस विधि से दयादेवी की आराधना करोगे तो उससे तुम्हारी आत्मा का रक्षण होगा। तुम्हें इसी भव में शान्ति प्राप्त होगी और आगे सद्गति का लाभ होगा।
दान
• यह परिग्रह जाने वाला है, आज नहीं तो कल स्वतः सुनिश्चितरूपेण जाएगा। स्वयं जाय इससे पहले ही इसको
छोड़ दें तो इसमें बलिहारी है। लेकिन आप कहोगे कि स्वयं जाय उसकी परवाह नहीं है, हम आगे होकर इसको कैसे छोड़ें? पर यह तो समझो कि आप जो अन्न खाते हो, क्या उसका विसर्जन नहीं करते? क्या इसके लिए आपसे किसी को कहने की जरूरत पड़ती है? यह सुनिश्चित है कि जिस प्रकार अन्न ग्रहण किया जाता है उसी प्रकार समय पर शरीर के मल का विसर्जन भी होना चाहिए। यदि मल विसर्जन नहीं होगा तो हमारी तन्दुरुस्ती को खतरा है। यदि जमा रह गया तो डाक्टर को दवा देकर या एनिमा लगाकर निकालना होगा। इसी प्रकार जिस दिन ज्ञान हो जाए कि परिग्रह-पुद्गल छोड़ने योग्य हैं, जिस तरह से हम उनका संग्रह करते हैं, उसी प्रकार उनका निष्कासन या विसर्जन भी होना चाहिए। विसर्जन की नाड़ी भी साफ रहनी चाहिए। यदि विसर्जन की नाड़ी बिगड़ गयी तो स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा। यह ज्ञान हो गया तो आप स्वयं विसर्जन के लिए तैयार हो जाओगे। धन पर ममता की पकड़, ममता की गांठ ढीली होगी, तभी दान की भावना जगेगी, दान दिया जा सकेगा। कई लोग “असतीजनपोषण” में थोड़ा-सा फेरफार करके “असंजतीजनपोषण” कर देते हैं और कहते हैं कि संयमी जनों अर्थात् साधुओं के अतिरिक्त किसी भी भूखे को रोटी देना पाप है। मगर यह व्याख्या प्रमाद या पक्षपात से प्रेरित है। यह साम्प्रदायिक आग्रह का परिणाम है। इस प्रकार की व्याख्या करने से दया, अनुकम्पा और