Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं भाव रखता हो, जो धर्म या कर्म कहीं भी की जाने वाली हिंसा को हिंसा मानकर उसका बहिष्कार करता हो, वस्तुत: वही कल्याणकारी सर्वश्रेष्ठ धर्म है। उपर्युक्त लक्षणों से परीक्षण के पश्चात् जैन धर्म सर्वश्रेष्ठ प्रतीत हुए बिना नहीं रहेगा। • हर धान्य में न्यूनाधिक भूख मिटाने की शक्ति होती है। वैसे ही सभी धर्मों का कुछ न कुछ अंश आत्म-कल्याण
के लिए उपयुक्त और उपादेय है। परन्तु जो आत्मा को अधिकतम बल प्रदान करता है, वही मुक्तिकामी जनों के लिए सन्तोषपूर्वक ग्रहण करने योग्य है। । धर्म-नायक • भगवान महावीर ने कहा कि उपदेश देना एक बात है और किसी को रास्ते पर लगाना दूसरी बात है और रास्ते
पर चलाना अलग बात है। तीर्थंकर, आचार्य और धर्म-संघ के नायक किसी को धर्म में लगाकर ही अलग नहीं हो जाते हैं, बल्कि धर्म पर चलाने का काम भी करते हैं। धर्म पर चलाने वाले को धर्मनायक कहते हैं। आज यदि किसी को संघ का नायक बना दें या धर्म का नायक बना दें तो साधर्मियों को सम्भालना उसका काम है। धर्म-प्रवृत्ति में किसी को कोई भ्रान्ति हुई है तो उसको दूर करने में उसको रस आना चाहिए। धर्मनायक बनने वाले में संघ की सहज वत्सलता होती है और सहज ही साधर्मी वत्सलता होती है। वह सोचता है कि तन क्या काम आयेगा? मेरी वाणी क्या काम आयेगी ? मुझे समय मिलता है, उसमें साधर्मी भाइयों का लाभ मिले तो लेॐ यश की आकांक्षा नहीं रखू।
धर्म-प्रचारक • किसी भी समाज की उन्नति प्रचारकों पर निर्भर है। हमारे समाज में ऐसे प्रचारकों की अत्यंत आवश्यकता है जो
सर्वत्र घूमकर समाज की सार-सम्भाल कर सकें। समाज में जहाँ जिस बात की आवश्यकता हो उसकी पूर्ति करना, धर्म विमुख लोगों को धर्म की ओर आकर्षित करना, जहाँ शिक्षा की समुचित व्यवस्था न हो वहाँ व्यवस्था करना, बालकों के अभिभावकों को समझा-बुझा कर धार्मिक संस्थाओं में भिजवाना या अनुकूलता हो तो शिक्षा-संस्था की स्थापना करना, ऐसे ज्ञान और सदाचार के प्रसार करने के अनेक कार्य हैं, जो योग्य और
सेवाभावी प्रचारकों के अभाव में नहीं हो पा रहे हैं। • यदि जिन शासन को उन्नत करना है, साधु समाज को ऊँचा रखना है तो साधुओं और श्रावकों के बीच एक
मध्यमवर्ग की स्थापना करना परमावश्यक है। धर्म-प्रेरणा
• दूसरे को उपदेश देकर पाप करने की प्रेरणा मत दो और जो पाप का काम करता है, आरम्भ करता है उसका
अनुमोदन मत करो, लेकिन जो धर्म का काम करता है, उसके मन को बढ़ावा दो और धर्म करने वाले का दिल से अनुमोदन करके मन को प्रसन्न करो। इससे भी आपको पुण्य होगा। आपसे सामायिक की साधना एक टाइम से ज्यादा नहीं होती, लेकिन दूसरे करने वालों को आपने प्रेरित किया और उनके मन को इस सत्कार्य में लगाया, २४ घण्टों में १ घण्टे के लिये भी उसको आरम्भ-परिग्रह से छुड़ाया तो उसके मन, मस्तिष्क में शान्ति मिलेगी, पाप से बचेगा। इस प्रकार आपकी प्रेरणा से १० आदमी तैयार हो गए तो पुण्य का कैसा अनूठा कार्य होगा।