Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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ना चाहिए।
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं करते-करते चार आदमी बाहर से दूसरे आ गये तो मंदिर में बैठा हुआ भक्त जो धीमे-धीमे भजन कर रहा था, वह इनको देख कर जोर से करने लगता है और वे चार आदमी चले गये तो फिर पहले जैसा हो जाता है-इधर-उधर देखने लगता है। यह सब क्यों होता है? जब, तक ज्ञान पर पर्दा पड़ा है तब तक ऐसा होता है। हमको और आपको क्रिया करके अज्ञान का पर्दा दूर हटाना है और ज्ञान की ज्योति बढ़ानी है। धर्म-स्थान में आने वाले भाई-बहनों से कहना यह है कि सबसे पहले ध्यान यह रखा जाए कि अपरिग्रहियों के पास जाते हैं तो ज्यादा से ज्यादा अपरिग्रहियों का रूप धारण करके जाना चाहिए। • आपके सन्त इतने अपरिग्रही और आप धर्मस्थान में आते समय सोचें कि बढ़िया सूट पहनकर चलें। बाई सोचती है कि सोने के गोखरू हाथों में पहन लें, सोने की लड़ गले में डाल लें, सोने की जंजीर कमर में बांध लें यहाँ तक कि माला के मनके भी लकड़ी चन्दन के क्यों हों, चाँदी के दानों की माला बनवा लें, तो यह सोच
ठीक नहीं। • एक बाई से यह पूछा कि आप व्याख्यान में क्यों नहीं आतीं? वह कहने लगी-“बापजी ! जीव तो घणो ही टूटे है कि व्याख्यान में आऊँ पण कांई करूं अकेली हूँ , पेरण ने जेवर नहीं है। दागीना बिना पहने जाऊँ तो घर की इज्जत जावे।" आपने इस तरह का वातावरण समाज में बना रखा है। इस वातावरण के कारण व्याख्यान में आने से वंचित रहना पड़ता है। यह गलत रूप है। सोने के आभूषणों से आत्मा की कीमत नहीं, आत्मा की कीमत है सदाचार से, प्रामाणिकता से और सद्गुणों से। भगवान् महावीर ने अन्न-जल की तरह अल्प वस्त्र धारण करने को भी तप कहा है। मनुष्य यदि अधिक संग्रही बनेगा, तो उससे दूसरों की आवश्यकता-पूर्ति में कमी आयेगी। फलस्वरूप आपस में वैर-विरोध तथा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होगी। संग्रही पुरुष को रक्षण की उपधि और ममता का बन्धन रहेगा, जिससे वह शान्तिपूर्ण गमनागमन नहीं कर सकेगा। अतः व्रती को सादे जीवन का अभ्यास रखना चाहिये। धार्मिक स्थलों में खासकर बहुमूल्य वस्त्र और आभूषणों को दूर रखना चाहिये, क्योकि धर्म-स्थान में धन-वैभव का मूल्य नहीं, किन्तु साधना
का महत्त्व है। • आभरण खासकर प्रदर्शन की वस्तु है। लोग सुन्दर आभूषणों से दर्शकों को आकर्षित करते हैं। सर्वप्रथम तो
आभूषण-धारण करने से दर्शकों के मन में ईर्ष्या और लालसा जागृत होती है; दूसरे में संग्रह और लोभवृत्ति का विकास होता है । वासना जगाने का भी आभूषण एक महान कारण माना जाता है। वस्त्राभूषणों से लदकर चलने वाली नारियाँ अपने पीछे आँखों का जाल बिछा लेती हैं और स्थिर प्रशान्त मन को भी अस्थिर एवं अशान्त कर देती हैं। विशेषज्ञों का कथन है कि नारी का तन जितना रागोत्पादक नहीं होता, ये वस्त्राभूषण उससे अधिक
राग-रंगवर्द्धक होते हैं। • जहाँ देखो वहीं दिखावट है। शान-शौकत के लिए लोग आडम्बर करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें जो है, उससे अन्यथा ही अपने को प्रदर्शित करना चाहता है। अमीर अपनी अमीरी का ठसका दिखलाता है। गरीब उसकी नकल करते हैं और अपने सामर्थ्य से अधिक व्यय करके सिर पर ऋण का भार बढ़ाते हैं। इन अवास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के अनैतिक उपायों का अवलम्बन लेना पड़ता है। इस कारण व्यक्ति, व्यक्ति का जीवन दूषित हो गया है और जब व्यक्तियों का जीवन दूषित होता है तो सामाजिक जीवन निर्दोष कैसे हो सकता है?