Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
किया है। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग से जो कचरा आया है, उसे चिन्तन द्वारा बाहर निकालना, पीछे हटाना इसका नाम है 'प्रतिक्रमण'। जो लोग कहते हैं कि सूत्रों का और प्रतिक्रमण का हिन्दी में अनुवाद कर देना चाहिए , उनको समझना चाहिए कि हिन्दी का अनुवाद करके मूल को हटा देंगे तो आपको उन सूत्रों की मूल प्राकृत भाषा का ज्ञान नहीं रहेगा, मूल सूत्र का वाचन बंद हो जाएगा। इसके अतिरिक्त भाषा में अनुवाद करते समय यह समस्या भी आयेगी कि किस भाषा में अनुवाद किया जाए? भारत में तो राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी, बंगला, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, सिन्धी, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाएँ हैं। यदि कोई कहे कि सभी भाषाओं में अनुवाद कर दिया जाए तो भी दिक्कत आयेगी। कल्पना करिए, एक ही स्थानक में बैठे विभिन्न भाषा-भाषी लोग अपनी-अपनी भाषा में सामायिक के पाठ बोलेंगे तो कैसी हास्यास्पद स्थिति हो जाएगी। एकरसता भी नहीं रहेगी। और सब से बड़ी बात तो यह है कि मूल पाठों में जो उदात्त और गुरुगंभीर भाव भरे हैं वे अनुवाद में कभी नहीं आ सकते। इसलिए पाठों का मूल भाषा में रहना सर्वथा उचित और लाभकारी है। इसी से हमारी प्राचीन धार्मिक परम्परा और धर्मशास्त्रों की भाषा अविच्छिन्न रह सकती है। साथ ही आज जो सामायिक करते समय या शास्त्र पढ़ते समय हम इस गौरव का अनुभव करते हैं कि हम वीतराग प्रभु के मुख से निसृत वाणी का पाठ कर रहे हैं, वह भी अक्षुण्ण रह सकता है। आज के युग की यह विशेषता और विचित्र प्रवृत्ति है कि आदमी भूल करने पर भी अपनी उस भूल अथवा गलती को मानने को तैयार नहीं होता। बहुत से लोग तो दोष स्वीकार करना मानसिक दुर्बलता मानते हैं। शास्त्र कहते हैं कि जो जातिमान, कुलमान, ज्ञानवान् और विनयवान् होगा वही अपना दोष स्वीकार करेगा। आध्यात्मिक क्षेत्र में दोषी स्वयं अपने दोष को प्रकट कर पश्चात्ताप करता है। जीवन-शुद्धि के लिए यह आवश्यक है कि साधक सूक्ष्म दृष्टि से प्रतिदिन अपना-स्वयं का निरीक्षण करता रहे। नीतिकार ने कहा है कि-'प्रत्यहं प्रत्यवेक्षेत नरश्चरितमात्मनः।' कल्याणार्थी को प्रतिदिन अपने चरित्र का सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण करना
चाहिए। • प्रतिक्रमण केवल पाटियाँ बोलने से ही पूरा नहीं होता है। यह तो एक साधना है जिससे दोष सरलता से याद
आ जावें । इसलिए आचार्यों ने, शास्त्रकारों ने प्रतिक्रमण की पाटियाँ आपके सामने रखी हैं। पाठ तोते की तरह बोले गये, मिच्छामि दुक्कडं, जहाँ आया, वहाँ मुँह से कह दिया, लेकिन किस बात का 'मिच्छामि दुक्कडं' इसका पता नहीं। दैनिक व्यवहार करते यदि झूठ बोला गया, माप-तोल में ऊँचा-नीचा हो गया, किसी से कोई बात मंजूर की, लेकिन बाद में वचन का पालन नहीं किया, कभी चोरी का माल ले लिया, चोरों की मदद दी या तस्करी करने में हाथ रहा हो तो उसके लिए अपनी आत्मा से पश्चात्ताप करने का खयाल होना चाहिए। प्रतिक्रमण करने वाले भाई-बहिन जीवन में दोष का संशोधन करके उसको उज्ज्वल करें।
प्रदर्शन
• एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर, एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय पर छींटा-कसी करते हैं, धब्बा या लांछन लगाने की |
कोशिश करते हैं, ऐसी स्थिति में उनका धर्म-स्थान पर बैठना लाभकारी नहीं होता। माला फेरते-फेरते, भजन |