Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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_ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं • द्रव्य-निद्रा सहज उड़ाई जा सकती है, पर जो व्यक्ति मोह भावनिद्रा में हो उसको जगाना सहज नहीं है। इसीलिए कहा है
जो काल करे सो आज ही कर, जो आज करे वह अब कर ले।
जब चिड़िया खेती चुग डारी, फिर पछताये क्या होवत है। • शास्त्र और सत्संग, साधना के लिए प्रेरणा देते हैं, किन्तु प्रमाद साधक को पीछे धकेल देता है, जिसे शास्त्रों ने
प्रमुख लुटेरा कहा है। सर्वविरति मार्ग के साधक को भी प्रमाद नीचे गिरा देता है और जब इसका रूप उग्र हो
जाता है, तब मानव आराधक के बदले विराधक बन जाता है। • जिसमें या जिसके कारण जीव भान भूले, वह प्रमाद है। शब्द-शास्त्र में कहा है-"प्रकर्षेण माद्यति जीवो येन स ||
प्रमादः।” प्रमाद में मनुष्य करणीय या अकरणीय का विवेक भूल जाता है, उन्मत्त हो जाता है। विषयों में भी प्राणी मत्त हो जाता है तब साधना नहीं कर पाता। क्रोध, मान, माया, लोभ ये कषाय रूप प्रमाद हैं। ये जीवन-निर्माण के बाधक तत्त्व हैं, जो विरति भाव को जागृत नहीं होने देते। सच्चरित्र का पालन नहीं करने देते।
ये आत्मा के भान को भुला देते हैं और जीवन को लक्ष्यहीन बना देते हैं। • आचारांग-सूत्र में भगवान् महावीर ने सन्तों से कहा कि आज्ञा पालन में प्रमाद न करो और आज्ञा के बाहर उद्यम |
न करो, क्योंकि ये दोनों अवांछनीय हैं। • मन के सूनेपन को हटाने के लिए इन्द्रियों को सत्कार्य में, मन को प्रभु-स्मरण, धर्म-ध्यान और शुभ-चिन्तन में तथा
वाणी को स्वाध्याय में लगाया जाय, तो प्रमाद को स्थान नहीं मिलेगा। . प्राणि-रक्षा
• कांटे और फूल दोनों की अपने-अपने स्थान में उपयोगिता है, वैसे ही सांप, बिच्छु, कुत्ते और कौए आदि निरर्थक लगने वाले प्राणधारियों का भी उपयोग और महत्त्व है। जो लोग समझते हैं कि हिंसक जीवों को मारना धर्म है, वे भूल करते हैं। यदि इसी प्रकार पशु जगत् यह खयाल करे कि मानव बड़ा हत्यारा और खूखार है उसे मार भगाना चाहिए तो इसे आप सब कभी अच्छा नहीं कहेंगे। इसी तरह अन्य जीवों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। संसार में रहने का अन्य जीवों को भी उतना ही अधिकार है जितना कि मनुष्य को। सबके साथ मैत्री बना कर रहना चाहिए। अपनी गलती के बदले दूसरों को बड़ा दंड देना अच्छा नहीं। इस प्रकार की हिंसा से प्रतिहिंसा और प्रतिशोध की भावना बढ़ती है, जो संसार के लिए अनिष्टकारी है। प्रामाणिकता
• जिस व्यापारी की प्रामाणिकता (साख) एक बार नष्ट हो जाती है उसे लोग अप्रामाणिक समझ लेते हैं। उसको
व्यापारिक क्षेत्र में भी हानि उठानी पड़ती है। आप भली-भांति जानते होंगे कि पैठ अर्थात् प्रामाणिकता की प्रतिष्ठा व्यापारी की एक बड़ी पूंजी मानी जाती है। जिसकी पैठ नहीं वह व्यापारी दिवालिया कहा जाता है। अतएव व्यापार के क्षेत्र में भी वही सफलता प्राप्त करता है, जो नीति और धर्म के नियमों का ठीक तरह से निर्वाह करता है। • श्रावक-धर्म में अप्रामाणिकता और अनैतिकता को कोई स्थान नहीं है। व्यापार केवल धन-संचय का ही उपाय
नहीं है। अगर विवेक को तिलांजलि न दी जाय और व्यापार के उच्च आदर्शों का अनुसरण किया जाय तो वह