Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
४१०
दिया। 'जनसेवी हैं' यह कह कर उनकी बुद्धिमत्ता को सभी सराहेंगे ।
• जीवन में पहला नम्बर देव - भक्ति का दूसरा नम्बर संत-सेवा का, तीसरा नम्बर परिवार के सदस्यों को संभालने का, चौथा नम्बर अपने स्वास्थ्य को संभालने का और पाँचवा नम्बर काम धंधे का । इस तरह से जीवन को चलाओगे तो गाड़ी अटकेगी नहीं, भटकेगी नहीं और समाज में नीचा देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।
• परिग्रह का बंधन तब तक नहीं कटेगा, जब तक मनुष्य यह न मान ले कि यह आत्मा के लिए दुःखदायी है और जीवन-निर्माण में बाधक है। '
• आज मानव परिग्रह को उच्चता और सुख-सुविधा की निशानी समझता है । वह भूल गया है कि परिग्रह उच्चता की निशानी नहीं है। लोगों में सम्मान की निगाह कब होगी - परिग्रह - त्यागने पर, या रखने पर ? इतनी सीधी-सादी चीज़ को भी मानव भूल जाता है, इससे बढ़कर अज्ञान क्या हो सकता है। इसलिए मुक्ति का रास्ता बनाना है तो अज्ञान को नष्ट करके ज्ञान का प्रकाश किया जायेगा तो मोक्ष और मोक्ष का मार्ग नजदीक हो जाएगा।
• २५ हजार देव जिसकी सेवा करते हैं, ऐसा चक्रवर्ती भी अरिहन्त तीर्थंकर की वाणी सुनकर अपने राज्य को छोड़ देता है और कहता है 'राजेश्वरी सो नरकेश्वरी' मुझे राज्य नहीं चाहिए, मुझे राज्यपद पर रहकर नरक में नहीं जाना है। इसमें लिप्त रहा, फंसा या उलझा रहा तो यह नरक में ले जाने वाला है।
•
ये रजत, स्वर्ण, हीरे और जवाहरात के परिग्रह भार हैं । कुटुम्ब की आवश्यकता के लिए परिग्रह रखना जरूरी समझते हैं तो ऐसा करो कि उस पर तुम सवारी करो, लेकिन तुम्हारे पर वह सवार नहीं हो। यदि धन तुम पर सवार हो गया तो वह तुमको नीचे डुबा देगा I
• जितना जल्दी बिना श्रम के, बिना न्याय के, बिना नीति के पैसा मिलाया जाता है, उस पैसे से लखपति करोड़पति हो सकते हैं, लेकिन वह पैसा उस परिवार को शान्ति और समता देने वाला नहीं होता। पैसा पाया और घर शान्ति नहीं तो पैसे का फायदा क्या ?
में
• आप हजारों का व्यापार करते हो । हजारों लोग आपकी दुकान पर माल खरीदने के लिए आते होंगे। आप उनसे थोड़ा-थोड़ा मुनाफा लेकर जीवन चला सकते हो, बाल-बच्चों और परिवार का पोषण कर सकते हो और इससे आपकी अहिंसा भी बची रह सकती है। अधिक मुनाफा लेने के लिए किसी के सुख-दुःख की परवाह किये बिना चलोगे तो वहाँ हिंसा होगी, आपका जीवन परेशान रहेगा, आपको सुख-शान्ति नहीं रहेगी, परिवार में प्रसन्नता नहीं रहेगी।
• जो पैसा किसी नीति से नहीं मिलाया जाता है, दूसरे को तकलीफ दिये बिना नहीं मिलाया जाता है वह पैसा आपको शान्ति नहीं दे सकता । एक सद्गृहस्थ वही है जो राजी मन से, देने वाले से राजी मन से ले, उसको कष्ट नहीं दे। ऐसा पैसा आपके लिए दुःखकारी, अहितकारी और उसके लिए भी पीड़ाकारी नहीं होगा । परिग्रह - परिमाण
• आवश्यक द्रव्य रखते हुए भी आप परिग्रह पर ममता की गाँठ को ढीली कर के अपरिग्रही बन सकते हैं । • परिग्रह का बन्धन यदि प्रगाढ़ होगा तो उत्तरोत्तर ईर्ष्या, द्वेष, कलह, लड़ाई-झगड़े, मिलावट चोरबाजारी और मुकद्दमाबाजी होगी। इसके विपरीत आप परिग्रह पर ममता घटाकर अपने स्वयं के जीवन-निर्वाह के लिये, अपने