Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३८७ वास्तविक लाभ नहीं होगा। • शारीरिक तप से जिस प्रकार तन का रोग नष्ट होता है, उसी प्रकार आभ्यन्तर तप से आत्मा का कर्म-मैल या मन |
के विकार नष्ट होते हैं। - तप में प्रदर्शन • तप की क्रिया आत्म-गुण को जगाने के लिए है। पर आत्म-गुण को जगाने के प्रसंग पर भी बढ़िया से बढ़िया
वेश निकाले जा रहे हैं। आज बाईजी पचक्खाण करने जा रही हैं, तो नये-नये आभूषण, हीरे की चूड़ियाँ निकाली
जा रही हैं। • आज के समय में इसको धर्म-प्रभावना समझा जा रहा है। वस्तुतः इसे धर्म-प्रभावना समझना बिल्कुल गलत है।
आज तो यदि मैं यह कहूँ कि यह प्रभावना नहीं, बल्कि अप्रभावना है तो भी अनुचित नहीं होगा। आज जिस समय हजारों-लाखों लोगों को भर पेट रोटी मुश्किल से मिले और इतनी कमरतोड़ महंगाई में लोगों का जीवन निर्वाह मुश्किल से हो, उस समय हमारी माताएँ, बहिनें धर्म-प्रभावना के लिए हजारों लोगों में प्रदर्शन करती हुई बाजार से निकलें तो लोगों की नजरों में शीतलता पैदा करेंगी या आग? लोगों के मन में प्यार पैदा करेंगी या खार? तपस्या की साधना के प्रसंग में इस तरह का प्रदर्शन करना, भेद-भाव को बढ़ाने वाला होगा या आत्म-भाव को जगाने वाला? नया बढिया बेस निकाला, गोखरु, दस्तबंद, भुजबंद, हथफूल, कर्णफूल, जड़ाऊ भारी हार और अन्यान्य प्रकार के अलंकार धारण कर पच्चक्खाण के लिये आडम्बर के साथ व्याख्यान में जावे, तो यह तपस्या में एक प्रकार का विकार है। आप जो प्रदर्शन में, दिखावें में खर्चा करते हैं, वही यदि कमजोर भाई-बहिनों की सहायतार्थ खर्च करें तो अधिक अच्छा रहेगा। जिनके खाने की व्यवस्था नहीं है, ऐसे लोगों की व्यथा दूर की जाए तो लाभ का कारण है। आपने तपस्या की है, इसलिए आपको भूख की व्यथा का कष्ट मालूम है। तपस्या वाले को अनुभव है कि दो दिन का भूखा किस तरह कष्ट में समय गुजारता है। यदि कोई भाई-बहिन उनके कष्ट निवारणार्थ इस तरह द्रव्य का वितरण कर दान करें तो विशेष प्रभावना का कारण हो सकता है। एक जमाना था जब वरघोड़ा या जुलूस आवश्यक समझे जाते थे, इससे प्रभावना होती थी, लेकिन आज उसका
और रूप होना चाहिए। बाजे-गाजे के बदले संगीत मंडली या समाज के भाई-बहनों के साथ मंगल गीत गाते भी निकल सकते हैं। साधर्मियों की सेवा में थोड़ी भी शक्ति लग सके तो समझा जायेगा कि तपस्या करने | वाली बाइयों ने सच्ची प्रभावना कर अपनी तपस्या सफल बना ली है। हजारों रुपये बैंड वगैरह में, जीमनवार में खर्च होते हैं। वे उधर से बचाकर समाज-सेवा में लगायें जाएं तो उस |
धन का अति सुन्दर सदुपयोग हो सकता है। • हमारी तपस्या अमीर गरीब सब के लिए समान हो।
तृष्णा • आज खाने को है कल न रहा तो. । आज स्वस्थ हैं कल बीमार पड़ गये तो । इसी प्रकार हर बात के लिए 'तो'