Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं . असंयम को ज्यादा बढ़ाना ही संयम को बन्द रखने का बड़ा कारण है। • जहाँ संयम है, वहाँ संवर है और असंयम है, वहाँ आस्रव है। . जहाँ कहीं भी इन्द्रियों व मन की राग वृत्ति का पोषण है, वहाँ धर्म नहीं है। • मेरा अनुभवी मन कहता है कि बाहरी प्रदर्शनों से जैन धर्म दुनिया के सामने अपना गौरव नहीं बढा सकता, जैन |
धर्म तो आडम्बरविहीन रहने की बात कहता है। • माताएँ तपस्या के साथ संयम करें, वेश-भूषा और लेन-देन में संयम करें तो हजारों लाखों जीवों की हिंसा बच
सकती है। • एक तरफ जानवरों को छुड़ाना और दूसरी तरफ हिंसा से जो चीजें बनती हैं, उनको इस्तेमाल करना, कितनी
विसंगति है ? • गुणवानों ने जीवन बनाने का जो मार्ग-दर्शन दिया है उसको पकड़ लें, यह उनका बहुत बड़ा गुणगान है। • महावीर ने मार्ग बताया कि अपना खयाल रखकर, अपनी चोटी पहले पकड़कर, खुद सुधरते हुए संसार का
सुधार करो। • यदि दूसरों को देखकर तालियाँ बजाते रहेंगे और घर में करने-कराने को कुछ भी नहीं है तो वास्तव में समाज
का कोई गौरव नहीं होगा। • सद्गृहस्थ वह है जो सत्पात्र को रोज दान देवे ।
देव-भक्ति, गुरु-सेवा, स्वाध्याय, संयम, तप और दान - ये गृहस्थ के षट् कर्म बताये गये हैं।
आपका दान जनता की नजर में जल्दी आ सकता है, लेकिन साधु का दान देखने में नहीं आता। • नाम के भूखे महानुभाव ज्यादा हैं और काम करने के कम।। • यदि दान का उचित उपयोग करें तो समाज में देने वालों की कमी नहीं है। • आप द्रव्य का त्याग करेंगे तो ममता घटेगी। दूसरी बात समाज में त्याग की परिपाटी कायम रहेगी। तीसरी बात
त्याग करने से समाज दुर्बल और पराश्रित नहीं रहेगा, अपने पैरों पर खड़ा रह सकेगा। • जैन धर्म जैसा ऊँचा धर्म पाकर आप पिछड़े रह गये, तो इससे ज्यादा कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। • द्रव्य-दया से ही जैन धर्म ऊँचा नहीं उठेगा, द्रव्य-दया के साथ-साथ भाव-दया भी करें। • जैसे नमक के बिना भोजन अच्छा नहीं लगता है, उसी तरह द्रव्य-दया के साथ भाव-दया भी आवश्यक है। • आप चाहे तप कीजिये, दया कीजिये, शीलव्रत धारण कीजिये, दान दीजिये, जो कुछ भी कीजिये निष्कपट भाव
से, सरल मन से कीजिये । ऐसा नहीं हो कि मन में कुछ और है और बाहर कुछ और। • सही आराधना करनी है तो तन से, मन से, जीवन से कपट को हटाकर साधना के मार्ग में आगे आना चाहिए। • मन में गाँठ बाँधकर रखोगे तो साथ में काम करने वालों की गाड़ी आगे नहीं चलेगी, गाड़ी अटक जाएगी। • जिस प्रकार स्वादु फल वाले वृक्ष पर पक्षी मँडराते हैं; इसी प्रकार प्रकाम रस-भोजी को विषय घेरे रहते हैं। • कर्णप्रिय गीत सुनना, सुन्दर रूप और चलचित्र देखना, तेल-फुलेल लगाना आदि कामनाएँ, लहरें उसी में उत्पन्न