Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३३९ • अन्याय और अत्याचार का बहिष्कार आचार-शुद्धि के बल पर ही हो सकता है। |. धर्माराधक के तीन विभाग हैं-एक सम्यक् दृष्टि, दूसरा देशव्रती और तीसरा सर्वव्रती।
सत्य की बात कहना और सत्य को मान लेना उतना कठिन नहीं है, जितना आचरण में कदम रखना । यदि आत्मा को बलवान बनाना है तो त्याग और अच्छाई को आचरण में लाना होगा। गलती को कबूल करना | पहला धर्म है, गलती को सर्वथा नहीं करना दूसरा धर्म है और गलती को पूरी तरह से न करने की क्षमता न होने पर एक सीमा तक स्थूल रूप में गलती न होने देना, यह तीसरा रूप है। भवसागर जिससे तरा जाये, जन्म-मरण का बन्धन काट करके आत्मा संसार से पार हो जाये, उस साधना को तीर्थ
कहते हैं। • कामना को वश में नहीं करने वाला कदम-कदम पर चुनौती के संक्लेश में, आकुलता-व्याकुलता के घेराव में
पड़ता है, उसका मन चंचल एवं असंतुष्ट रहता है।
अस्थिर मन से धर्म की, व्रतों की साधना नहीं होती। • आहार पर कन्ट्रोल नहीं करेंगे तो जीवन में पवित्रता व दृढ़ता नहीं रहेगी।
आत्मा में बहुत बड़ी शक्ति है वह सब कुछ कर सकती है। • जिसकी इच्छा किसी वस्तु को त्यागने की नहीं है, लेकिन बाध्य होकर त्याग करना पड़ रहा है, वह व्यवहार में तो त्यागी कहा जा सकता है, लेकिन असलियत में नहीं । धर्म तीन तरह से हो सकता है, स्वयं करना, कराना और करने वालों का अनुमोदन करना। अनुमोदन करने वाला
भी लाभ उठाता है। • कोई भी आदमी कमजोर नहीं है। तन से कमजोर होते हुए भी मन से बलवान हो तो वह सब कुछ कर सकता
• कामनाशील व्यक्ति अर्थ की साधना करता है, लेकिन मुमुक्षु धर्म की ।
यदि समिति के रूप में प्रवृत्ति की जाय तो वह बंध को रोकने का कारण है। • जिनशासन कहता है कि मानव ! कोई भी प्रवृत्ति करो उससे पहले देखो-भालो और खयाल करो कि तुम्हारे
चलने से, खाने से, उठने-बैठने से, सम्भाषण करने से किसी को तकलीफ तो नहीं। परिग्रह की ममता कब दूर होगी? जब 'स्व' का अध्ययन करोगे। अपने आप को समझ लोगे और जान लोगे
कि स्वर्ण, धन आदि से आत्मा की कीमत नहीं है। • आत्मा की कीमत है सदाचार से, प्रामाणिकता से, सदगुणों से। • मनुष्य का शरीर यदि सोने से लदा हुआ है, लेकिन वह सद्गुणी नहीं है तो निन्दनीय है। • ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में ज्ञान करने के लिये, दर्शन को सुरक्षित रखने के लिये जिस विधि की जरूरत है |
उस विधि या उन नियमों से चलने का नाम है 'आचार' । धर्म-साधना के लिए किसी के पास एक पैसा भी नहीं है तो भी उसके पास तीन साधन हैं–तन, मन और पवित्र