Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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( द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३३७ • आत्मिक जीवन की सुरक्षा के लिए व्रत की बाड़ आवश्यक है। • घर में लड़ना क्षीणता का कारण है और अपनों के सामने प्रेम से झुकना गौरव का कारण है। • धन-सम्पदा का गर्व न कर सत्कर्म से जीवन को ऊंचा उठाना ही मानव-जीवन का साफल्य है। • जड़ को छोड़ चेतन से प्यार करना ही सुख का साधन है। . परिग्रह पर नियन्त्रण ही शान्ति का मार्ग है। • समाजहित के लिए कथनी के अनुसार करणी में सहिष्णुता चाहिए। • दया की आराधना निष्पाप जीवन जीने का अभ्यास है। • संयम, तप व ज्ञान रूप सामायिक से राग-द्वेष की निवृत्ति होती है। • राग को गलाने से क्लेशमुक्ति होती है। • सम्यग्दर्शी परिग्रह को बन्धन मानता है और मिथ्यात्वी बन्दीखाने को घर मानता है। एक राग को गलाता है तो
दूसरा फलाता है। • हिंसा और परिग्रह का गाढ सम्बन्ध है। परिग्रह बढ़ेगा तो हिंसा भी बढ़ेगी। • अज्ञान-मोह-वासना से मुक्ति ही स्वतन्त्रता है। • मानव को सुखी रहने के लिये तन, मन और इन्द्रिय पर काबू रखना चाहिए। • राज्य, परिवार आदि में स्थायी विजय नहीं, स्थायी विजय के लिए अविकारी होना आवश्यक है।
समाज-व्यवस्था सुन्दर होनी चाहिए, जिससे सारे कार्य सुन्दर एवं व्यवस्थित हो सकते हैं।
ज्ञान, दर्शन आदि विशिष्ट गुणों से धर्म की प्रभावना होती है। • आलोचना और प्रतिक्रमण एक तरह से आत्मा का स्नान है। • मकड़ी अपना जाल फैलाती है सुरक्षा के लिए, लेकिन वह जाल हो जाता है मकड़ी को उलझाने के लिए। • जाल बनाने वाली मकड़ी में जाल बनाने की ताकत है, लेकिन जाल को तोड़ने की क्षमता नहीं है। वह अज्ञानी
है। लेकिन मानव में दोनों योग्यताएँ हैं। • बीज यदि जल जाय तो उसकी उत्पादन शक्ति नष्ट हो जाती है। फिर उसको भूमि में डालने पर और पानी की
सिंचाई करने पर भी अंकुर पैदा नहीं होता। • कर्मबंध का मूल कारण राग-द्वेष सूख गया, ढीला पड़ गया, खत्म हो गया तो कर्मवृक्ष भी सूख जायेगा। झाड़
का मूल (जड़) यदि सूख जाय तो ऊपर के पत्ते, डालियाँ, फूल, फल कितने दिन हरे भरे रहेंगे? • राग-द्वेष कर्म का मूल है। राग-द्वेष खत्म हो गया तो बाद में शरीर, वाणी आदि कर्मों के फल थोड़े दिन के लिए | दिखाई देते हैं बाद में तो सारा कर्मवंश ही खत्म हो जाता है। सोना-चांदी, हीरे-जवाहारात के ऊपर तुम सवार रहो, लेकिन तुम्हारे ऊपर धन सवार नहीं हो। यदि धन तुम पर
सवार हो गया तो वह तुमको नीचे डुबो देगा। • जिस तरह सूर्य की किरणें सब जगह पहुँचती है उसी तरह ईश्वर, परमात्मा या सिद्ध का ज्ञान सब जगह पहुँचता